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राह पे रहते हैं, यादों पर बसर करते हैं

साल 2000 में शाहरुख खान की फ़िल्म आयी थी जोश । फ़िल्म में उनके साथ थे चंद्रचूड़ सिंह, शरद कपूर और प्रिया गिल। फ़िल्म की कास्ट को लेकर चर्चा तब शुरू हुई जब ऐश्वर्या राय को फ़िल्म में लिया गया लेक़िन शाहरुख खान की हीरोइन के रूप में नहीं बल्कि बहन के रोल में। जहाँ फ़िल्म के निर्देशक मंसूर खान इस कास्ट को लेकर बहुत आशान्वित थे, जनता के लिये नये कलाकारों को ऐसे रोल में देखना एक नया अनुभव था।

पहले तो दोनों कलाकार इसके लिये मान गए वही बड़ी बात थी। इसके कुछ ही महीनों बाद शाहरुख – ऐश्वर्या के नई फ़िल्म आयी मोहब्बतें जिसमें दोनों एक रोमांटिक रोल में थे। इसके बाद इसी जोड़ी ने संजय लीला भंसाली की देवदास में भी काम किया। लेक़िन जैसी शाहरुख़ की काजोल, जूही या माधुरी के साथ जोड़ी बनी और पसंद भी की गई वैसी उनकी और ऐश्वर्या की जोड़ी नहीं बन पाई। और जो तीन-चार फिल्में साथ में करीं भी तो उसमें रोमांटिक जोड़ी नहीं रही।

पिछले दो दिनों से फिल्मी पोस्ट हो रहीं हैं तो आज किसी और विषय पर लिखने का मूड़ था। लेक़िन सुबह मालूम हुआ हरी भाई ज़रिवाला एवं वसंतकुमार शिवशंकर पादुकोण का जन्मदिन है, तो उनके बारे में न लिखता तो ग़लत होता। हिंदी फिल्मों के सबसे उम्दा कलाकारों और निर्देशकों में से एक या शायद एकलौते जिनकी कोई इमेज नहीं रही।

बहुत ही बिरले कलाकार होते हैं जो किसी भी रोल को निभा सकते हैं। हरिभाई अर्थात हमारे प्रिय संजीव कुमार जी ऐसे ही कलाकार रहे हैं। गाँव का क़िरदार हो या शहर बाबू का या पुलिस वाले का। हर रोल में परफ़ेक्ट। हर रोल में उतनी ही मेहनत।

वसंतकुमार शिवशंकर पादुकोण अर्थात गुरुदत्त जी भी ऐसे ही निर्देशक रहें हैं। आज मैं सिर्फ़ संजीव कुमार जी के बारे में लिख रहा हूँ। गुरुदत्त जी के बारे में विस्तार से बाद में।

अग़र वो जया भादुड़ी के साथ अनामिका में रोमांटिक रोल में थे तो परिचय में बाप-बेटी के क़िरदार में और फ़िर शोले में ससुर और बहू के रोल में। लेक़िन दोनों को साथ देखकर आपको कुछ अटपटा नहीं लगेगा। और न ही आपको ये बूढ़े ठाकुर को देखकर लगेगा की वो सिर्फ़ 37 साल के हैं। राखी भी ऐसी ही एक अदाकारा रही हैं जो अमिताभ बच्चन की प्रेयसी बनी तो शक्ति में उन्हीं की माँ का भी रोल किया है।

ये संजीव कुमार का हर तरह के रोल की भूख ही होगी की उन्होंने अपने सीनियर कलाकार शशि कपूर के पिता का रोल यश चोपड़ा की यादगार फ़िल्म त्रिशूल में करना स्वीकार किया।

आजकल हिंदी फिल्मों का हीरो फ़िल्म में बड़ा ज़रूर होता है लेक़िन बूढ़ा नहीं। मुझे हालिया फिल्मों में से दो फिल्में वीरज़ारा और दंगल ही याद आतीं हैं जिसमें क़िरदार जवानी से बुढ़ापे तक का सफ़र तय करता है। संजीव कुमार की शोले हो या आँधी उनका क़िरदार दोनों ही उम्र में दिखा औऱ क्या क़माल का निभाया उन्होंने।

आज के समय में कलाकार कला से ज़्यादा अपनी इमेज की चिंता में रहते हैं। संजीव कुमार की कोई भी फ़िल्म देख लीजिये लगता है जैसे क़िरदार उनके लिये ही लिखा गया था। उनके हर तरह के रोल करना ये सिखाता भी है की जो भी काम मिले उस काम को बखूबी निभाओ। कोई भी काम छोटा या बड़ा नहीं होता।

उनके दो रोल आँधी और अँगूर दोनों बहुत पसंद हैं। इत्तेफ़ाक़ से दोनो के निर्देशक गुलज़ार साहब हैं। वैसे अग़र आज संजीव कुमार जी होते तो शायद वो औऱ गुलज़ार साहब मिलकर न जाने और कितने क़माल की फ़िल्में करते।

जहाँ आँधी में संगीत का उसके पसंद किये जाने के पीछे बड़ा योगदान है, अंगूर तो सिर्फ़ और सिर्फ़ उनकी एक्टिंग के लिये प्रिय है। वो वाला सीन जिसमें वो गलती से अपने हमशक्ल के घर आ जाते हैं और उसकी पत्नी (मौष्मी चटर्जी) उन्हें अपना पति समझ कर उनसे बात करती है। इस पूरे पाँच मिनट के सीन में संजीव कुमार जी कितने उम्दा कलाकार थे, ये बख़ूबी दिखता है। जिस तरह से वो बताइये से बताओ, बताओ पर आते हैं या बहादुर के बाप बनने की ख़बर पर उनकी प्रतिक्रिया – सब एक्टिंग की मास्टरक्लास है। जब हमारे आज के हीरो जिम से फुर्सत पायें तो कुछ देखें।

जब छोटा था तब से एक पारिवारिक मित्र घर आते थे। जब भी उन्हें देखता लगता है उन्हें कहीं देखा है। वो बिल्कुल संजीव कुमार जी की तरह लगते और जैसे उनके बाल सफ़ेद रहते इनके भी वैसे ही रहते। और वैसा ही चश्मे का फ्रेम।

वैसे तो संजीव कुमार जी के एक से बढ़कर एक गाने हैं, ये मौसम के हिसाब का गाना है और एक बहुत ही कर्णप्रिय गीत है। मौसम, गीत दोनों का आनंद लें।

https://youtu.be/F6FkVPOMtvM

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