बचपन में और शायद उसके कुछ समय बाद भी गणपति और दुर्गाउत्सव के दौरान भोपाल में बड़ी रौनक रहती। घर के आसपास कई जगह पर प्रतिमा स्थापित होती और सब जगह कुछ न कुछ सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित होते रहते। उसमें से जिस कार्यक्रम का बेसब्री से इंतज़ार रहता वो था रात का फ़िल्म शो।
बीच रोड पर रात को दिखायी जाने वाली फिल्म का नाम दिन में बोर्ड पर लिखा रहता और रात 10 बजे से सफ़ेद चादर की स्क्रीन तैयार रहती हम लोगों के मनोरंजन के लिये। अक्टूबर की हल्की हल्की ठंडी रात और हाथ में गर्म ताज़ी सीकी हुई मूंगफली के साथ उस फ़िल्म को देखने का आनंद ही कुछ और था।
मुझे याद है शोले फ़िल्म की इस सीजन में बहुत डिमांड रहती। मैंने इसे हॉल में भी देखा है और खुली सड़क पर भी। दोनों के अपने मज़े हैं।
अब पता नहीं ये प्रथा चालू है या नहीं लेकिन आज शाहरुख खान के जन्मदिन पर फ़िल्म स्वदेस का ये गाना देखा तो वो समय याद आ गया। इस सीन/गाने में उन्होंने इस पर्दे के इस पार और उस पार की जो दूरी थी उसको मिटाने की कोशिश करी। गांव के बड़े बूढ़े ये सब देख कर थोड़े सकपकाये हुए से हैं। स्वदेस शाहरुख़ खान की मेरी सबसे पसंदीदा फिल्मों में से एक है। बहुत कम फिल्में हैं जिसमें शाहरुख खान ने किरदार को बहुत ही सहज रूप में निभाया है।
बरसों बाद ऐसे ही खुले आकाश में फ़िल्म देखने का मौका मिला अहमदाबाद में। वहाँ एक ड्राइव-इन थिएटर हुआ करता था। आप बस अपनी गाड़ी लेकर सीधे मैदान में चले जाइये और अपने साथ लायी हुई दरी, चटाई आदि बिछाकर बैठ जाइये या आराम करने के मूड में हैं तो लेट जाइये। खुले आकाश के नीचे शाहरुख़ ख़ान और काजोल को हो गया है तुझ को तो प्यार सजना देखने का आनंद ही कुछ और रहा होगा।
फ़िलहाल आप रोमांस के किंग के इस गाने का आनंद यहीं उठा सकते हैं।