मुम्बई-पुणे की पहली यात्रा के बारे में पहले बता चुका हूँ। जब दूसरी बार इसको कार्यस्थल बनाने का मौका मिला तो बिना कोई मौका गवाएँ मैंने हामी भर दी। एक बार भोपाल छुटा तो फिर सब जगह बराबर ही थीं। जुलाई 2000 में PTI ने मुंबई तबादला कर दिया और थोड़ा सा सामान और ढेर सारी यादों के साथ मायानगरी के लिये प्रस्थान कर दिया।
जो भी कोई मुम्बई आ चुका या रह चुका है वो ये समझेगा की मुम्बई जैसी कोई दूसरी जगह नहीं। आप शिकायत करते करते भी इसके तौर तरीके अपना लेते हैं और इसका एहसास आपको तब होता है जब आप कहीं और जाते हैं। मसलन यहाँ सुबह सब के लिये जल्दी होती है और दुकाने भी जल्दी खुल जाती हैं। कुछ दिनों बाद भोपाल गया तो लगा वहां सब चीज़ें स्लो मोशन में चल रहीं हैं।
मुम्बई पर वापस आते हैं। PTI ने चेम्बूर में एक फ्लैट को गेस्ट हाउस का नाम दे दिया था लेकिन ऐसी कोई सहूलियतें नहीं दिन थी। खाने का इंतज़ाम आपकी ज़िम्मेदारी थी। जल्द ही यहां कुछ नए प्राणी आने वाले थे और एक नीरस सा गेस्ट हाउस एक हंगामे वाली जगह बनने वाली थी।
मुम्बई लोकल में घुसना एक कला है जो आप धीरे धीरे सीख लेते हैं या यूँ कहें रोज़ रोज़ की धक्कामुक्की आपको सीखा देती हैं। शुरुआती हफ्ता थोड़ा समझने में गया। लेकिन फिर कौन सा डिब्बा पकड़ना है से लेकर कौन सी लोकल पकड़नी है सब सीखते गये। चेम्बूर के पास ही है तिलक नगर स्टेशन जिसने मुझे फिर से भोपाल से जोड़े रखा।
चेम्बूर में एक रेस्टॉरेंट है जहां प्रसिद्ध कलाकार, निर्माता, निर्देशक राज कपुर जी आते थे। एकाध बार खुद खा कर अपने आप को काफी गौरान्वित महसूस करने लगें लेकिन फिर ये भी सोचा कि आखिर ऐसा खास क्या हैं यहां के खाने में। लेकिन कोई मुम्बई आता तो उसको ज़रूर लेके जाते। इस उम्मीद पर की शायद वो बताएं। लेकिन सभी मेरे खयाल से मुझ जैसा ही रियेक्ट कर रहे थे।
PTI मुम्बई में काफी बदलाव हो रहे थे जब हमारा तबादला यहाँ किया गया। यह एक अलग चुनौती थी जिसका सामना करने के अलावा और कोई चारा नही था। लेकिन यहां के डेस्क और रिपोर्टिंग स्टाफ के सदस्यों ने बहुत ध्यान रखा। और ये इसका ही नतीजा है आज भी इन सभी से संपर्क बना हुआ है।
मुम्बई की बारिश का तब तक सिर्फ सिनेमा के पर्दे पर देख कर आनंद ही लिया था। उसके कहर को झेला नहीं था। लेकिंन वो दिन भी जल्दी आ गया जब ज़ोरदार बारिश के चलते मुम्बई ठप्प हो गयी थी। कैसे सामना किया इसका?