जन्मदिन तुम्हारा, मिलेंगे लड्डू हमको

A nostalgic collection of vintage photos in an old wooden box.

जन्मदिन हो और मिठाई न हो तो कुछ अधूरा सा लगता है।

प्यारी पम्मी,

सालगिरह मुबारक। पहले तो सोचा जो दो साल पहले तुम्हारे पहले जन्मदिन पर (मतलब तुम्हारे नहीं होने के बाद) जो लिखा था उसी से काम चला लेते हैं। फ़िर सोचा अब ये कोई नया सोनी का मंहगा म्यूजिक सिस्टम तो है नहीं जो नया लिख दिया तो तुम गुस्सा हो जाओगी और लड़ाई करने लगोगी। लेकिन फ़िर मेरी पसंदीदा जूही जी का QSQT का डायलॉग याद आ गया। क्या ऐसा हो सकता है। और आमिर ख़ान का जवाब \’नहीं\’। तो बस ये नई ताज़ा जन्मदिन की ढ़ेरों शुभकामनायें तुम्हारे लिए।

जब हम लोग पापा का सरकारी घर छोड़कर अपने घर में शिफ्ट हुए थे तब उस घर में पहला जन्मदिन तुम्हारा ही मनाया था। ये अलग बात है की 27 के बाद 28 आती है और नये घर में जाने के बाद दूसरे ही दिन तुम्हारा हैप्पी बर्थडे था। बस कह रहे हैं।

वैसे इस साल दिवाली में जब सब उसी घर में इकट्ठा हुए तो कोरम पूरा तो था लेकिन अब हमेशा के लिए अधूरा ही रहेगा। कोरम का कैरम से कोई लेना नहीं। बस बता रहे हैं। तुम सोचो कैरम के चार खिलाड़ियों की बात कर रहे हैं। वैसे कैरम से याद आया हम चारों ने कैरम साथ में कम ही खेला है या कभी खेला ही नहीं। ज्यादातर तो ताश ही खेलते थे। बस तीन पत्ती नहीं खेली, क्लब इस्टाइल में। 

ये कहना ग़लत होगा तुम्हारी याद आती है। याद तो उनकी आती है जिन्हे भूल जाते हैं। तुम्हारा ज़िक्र तो बस ऐसे ही होता रहता है। कभी गाना देखलो तो तुम्हारी बात निकल पड़ती है, कोई उटपटांग नाम सुनो तो ये सोचने लगते हैं तुम्हारी इस पर क्या प्रतिक्रिया होगी। कभी किसी जानने वाले की ताज़ातरीन हरक़त के बारे में कुछ बात होती है तो तुम्हारा क्या कहना होगा इस पर भी बात कर लेते हैं।

दो साल। 365*2। पता है तुम्हारा गणित मुझसे बेहतर है और मेरे पास होने के लाले पड़े रहते थे। लेकिन इसका जवाब तुम्हारा गलत होगा। ये महज़ 730 दिन की बात नहीं है। हर चीज़ गणित नहीं होती, गुणा भाग नहीं होती। ज़िंदगी इससे कहीं ऊपर है। और अब तुम्हारे पास तो टॉप फ्लोर से देखने का विकल्प भी है। वैसे नीचे से भी इतना कुछ बुरा नहीं दिखता है। हाँ दिल्ली में प्रदूषण कुछ ज़्यादा हो गया है।

गिरते संभलते हम लोग फ़िर से चल तो पड़े हैं, लेकिन मुड़ मुड़ के देखते रहते हैं। नादिरा और राज कपूर के पहले धीरे धीरे और बाद में थोड़ी तेज़ी में समझाने के बाद भी। वैसे इन दिनों गानों को बिगाड़ने का काम ज़ोरशोर से चल रहा है। कल ही मैंने \’आप जैसा कोई\’ का नया बिगड़ा हुआ रूप देखा। लेकिन 1980 की ज़ीनत अमान आज की नचनियों से मीलों आगे हैं। इस नए गाने के बजाय सिगरेट फूंकते फिरोज़ ख़ान को देखना ज़्यादा मज़ेदार है।

बचपन में एक गाना सुनते थे। जन्मदिन तुम्हारा मिलेंगे लड्डू हमको तो बस तुम्हारे जन्मदिन पर भी मुंह मीठा कर लिया। ज्यादा नहीं बस थोड़ा सा। बाक़ी खट्टी मीठी पुरानी यादों का अंबार है जिससे काम चल ही रहा है। शायद इसलिए शुगर कंट्रोल में आ रही है। बस ये कमबख्त वज़न का मुझसे इश्क कम हो जाये तो बात है। किसी ने सच ही कहा है इश्क़ और मुश्क छुपाए नहीं छुपते। और अपना तो ऐसे दिख रहा बायगॉड की क्या बताएं।

एक बार पुनः ढेर सारी बधाई। तुम जहां हो खुश रहो। सिर्फ़ तुम्हारा

मोटू डार्लिंग

जीवन सिर्फ सीखना और सिखाना है

मैंने अपना पत्रकारिता में करियर अंग्रेज़ी में शुरू किया और उसी में आगे बढ़ा। हिंदी प्रदेश का होने के कारण हिंदी समझने में कोई परेशानी नही होती है और ख़बर हिंदी में हो तो उसको अंग्रेजी में बनाने में भी कोई दिक्कत नहीं। इन सभी बातों का फायदा मिला और वो भी कैसे।

नासिर भाई ने अगर लिखना सिखाया तो दैनिक भास्कर के मेरे सीनियर और अब अज़ीज दोस्त विनोद तिवारी ने सरकारी दफ्तरों, अफसरों से ख़बर कैसे निकाली जाये ये सिखाया। विनोद के साथ भोपाल में नगर निगम और सचिवालय दोनों कवर कर मैंने बहुत कुछ सीखा। उन दिनों मैं प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहा था लेकिन विनोद ने एक दिन चाय पीते हुये एलान कर दिया था कि मुझे पत्रकारिता का कीड़ा लग चुका है और मैं अब यहीं रहूँगा।

हिंदी के पाठक उस समय भी अंग्रेजी से ज़्यादा हुआ करते थे लेकिन मुझे अंग्रेज़ी में लिखना ही आसान लगता। उस समय ये नहीं मालूम था कि पन्द्रह साल बाद मैं भी हिंदी में अपना सफ़र शुरू करूंगा। थोड़ा अजीब भी लगता क्योंकि मेरे नाना हिंदी के लेखक थे और पिताजी भी हिंदी में कवितायें लिखते थे।

इंडिया.कॉम को जब हमने हिंदी में शुरू करने की सोची तो मेरे बॉस संदीप अमर ने पूछा कौन करेगा। मैंने हामी भर दी जबकि इससे पहले सारा काम सिर्फ और सिर्फ अंग्रेज़ी में ही किया था। लेकिन \”एक बार मैंने कमिटमेंट कर दी तो उसके बाद मैं अपने आप की भी नहीं सुनता\” की तर्ज़ पर मुंबई में लिखने वालों को ढूंढना शुरू किया। इसमें मुझे मिले अब्दुल कादिर। वो आये तो थे अंग्रेज़ी के लिये लेकिन वहाँ कोई जगह नहीं थी और उन्हें जहाँ वो उस समय काम कर रहे थे वो छोड़नी था। समस्या सिर्फ इतनी सी थी कि उन्होंने हिंदी में कभी लिखा नहीं था। लेकिन उन्होंने इसको एक चुनौती की तरह लिया और बेहतरीन काम किया और आज वो हिंदी टीम के लीड हैं।

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आगे टीम में और लोगों की ज़रूरत थी तो कहीं से अल्ताफ़ शेख़ का नाम आया। अल्ताफ़ ने डिजिटल में काम नहीं किया था और हिंदी में लिखने में थोड़े कच्चे थे। शुरुआती दिनों में उनके साथ मेहनत करी और उसके बाद एक बार जब उन्हें इस पूरे खेल के नियम समझ में आ गए तो उन्होंने उसमें न केवल महारत हासिल कर की बल्कि उन्होंने अपना एक अलग स्थान बना लिया। हाँ शुरू के दिनों में अल्ताफ़ ने बहुत परेशान किया और शायद ही कोई ऐसा दिन जाता जब अल्ताफ़ पुराण न हो। लेकिन उनकी मेहनत में कोई कमी कभी नहीं आई और नतीजा सबके सामने है। इनके किस्सों की अलग पोस्ट बनती है!

अल्ताफ़ इन दिनों एक मनोरंजन वेबसाइट के कंटेंट हेड हैं और आये दिन फिल्मस्टार्स के साथ अपनी फोटो फेसबुक पर साझा करते रहते हैं। आज वो जिस मुकाम पर हैं उन्हें देख कर अच्छा लगता है। उनके चाहने वाले उन्हें लातूर का शाहरुख कहते हैं। लेकिन जिस तरह एक ही शाहरुख खान हैं वैसे ही एक ही अल्ताफ़ हैं। सबसे अलग, सबसे जुदा। जन्मदिन की ढेरों शुभकामनायें। हिंदी के टीम के बारे में विस्तार से फिर कभी।