
चलिये पत्र लिखने की बात से ये तो पता चला कि ऐसे भी लोग हैं जिन्होंने आज तक न तो पत्र लिखा है ना उन्हें कभी किसी ने। इसमें आश्चर्य जैसी कोई बात नहीं है। क्योंकि इन लोगों के समझते समझते मोबाइल फ़ोन का आगमन हो चुका था और हम सबको संपर्क में रहने के लिये एक नया तरीका मिल गया था। जिन्होंने कभी पत्रों का आदान प्रदान नहीं किया हो वो इससे जुड़े जज़्बात शायद न समझें। और अगर आने वाली पीढियां इस पर पीएचडी कर लें कि पत्र लिखने की कला कैसे विलुप्त हुई, तो कोई आश्चर्य नहीं होगा।
बदलाव का बिल्कुल स्वागत करना चाहिये लेकिन इस बदलाव ने भाषा बिगाड़ दी। एक तो लोग पहले से लिखना छोड़ चुके थे और उस पर ये छोटे छोटे मैसेज। रही सही कसर व्हाट्सएप ने पूरी कर दी। अब तो लिखना छोड़ कर सिर्फ 🙏, 👍,🤣 जैसा कुछ कर देते हैं और बस काम हो गया। मुझे अपने काम के चलते ऐसे बहुत से युवा पत्रकार मिले जो भ्रष्ठ भाषा के धनी थे।
ऐश्वर्या अवस्थी ने पोस्टमेन की याद दिला दी। हमारे यहाँ जो पोस्टमेन आता था उसको हमसे कोई खुन्नस थी। शायद उसका होना भी वाज़िब था क्योंकि हमारे यहां ढ़ेर सारे ख़त तो आते ही थे साथ में पत्रिकाओं का आना लगा रहता। जब मेरा पीटीआई में चयन हुआ तो इसका संदेश भी डाक के द्वारा मिला। हाँ आदित्य की तरह प्रेम पत्र नहीं लिखे। काश फ़ोन के बजाय लिख दिया होता तो आज दोनों अलग अलग ही सही पढ़ कर मुस्कुरा रहे होते।
ऐसा ही एक संदेश एक सज्जन के पास उनकी बहन ने पहुँचाया। उनकी पत्नी जो गर्भावस्था के अंतिम चरण में थीं उन्होंने पुत्र को जन्म दिया है। अब ये बात एक पोस्टकार्ड पर लिख कर बताई गई थी। ज़ाहिर सी बात है की पत्र कई लोगों द्वारा पढ़ा गया और नये नवेले पिता से पार्टी माँगी गयी और उन्होंने खुशी खुशी दे भी दी। समस्या सिर्फ इतनी सी थी की ऐसा कुछ हुआ नहीं था। डिलीवरी में अभी भी समय था। बहन ने भाई को यूँ ही लिख दिया था। फ़िर तो बहन को जो डाँट पड़ी।
भोपाल के एक सांसद महोदय ने भी इस पोस्टकार्ड का बहुत ही अनोखे तरीक़े से इस्तेमाल किया। उन्होंने अपने पते के साथ पोस्टकार्ड अपने क्षेत्र में लोगो को दे दिये। कोई समस्या हो तो बस मुझे लिख भेजिये। मतदाताओं को ये तरीका बहुत भाया।

सदी के महानायक अमिताभ बच्चन आज भी किसी को उनकी अदाकारी या किसी और काम के लिये बधाई या धन्यवाद अपने एक छोटे से स्वयं के लिखे नोट से करते हैं। नोट की क़ीमत इस लिए तो है ही कि इसे बच्चन साहब ने भेजा है। लेकिन उनके हाथ से लिखा हुआ है तो ये अमूल्य हो जाता है।
इस विषय पर थोड़ी रिसर्च भी कर डाली तो सब जगह यही पढ़ने को मिला। हज़ारों साल पुरानी ये परंपरा को लोगों ने लगभग छोड़ ही दिया है। हाँ जैसा आदित्य द्विवेदी ने कहा, फौज में आज भी ये चलन है। उतने बड़े पैमाने पर शायद नहीं लेकिन फौजी के घरवाले आज भी पत्र लिखते हैं।
फ़ोन पर आप बात करलें तो आवाज़ सुनाई देती है और दिल को चैन आ जाता है। सही मायने में जब आप पत्र लिख रहे होते हैं तो जाने अनजाने आप अपने बारे में कुछ नहीं बताते हुए भी बहुत कुछ बता जाते हैं। वैसे ही पत्र पढ़कर आप एक तस्वीर बना लेते हैं लिखने वाले के बारे। जैसे फ़िल्म साजन में माधुरी दीक्षित बना लेती हैं संजय दत्त की और उनसे प्यार करने लगती हैं। लेखक, कवि, शायर से बिना देखे बस इसलिये तो प्यार हो जाता है।
काफ़ी लोगों की तरह मैंने भी प्रण तो लिया है कि अब पत्र लिखा जायेगा। लेकिन इस पर कितना कायम रहता हूँ ये आप को तब पता चलेगा जब आपके हाथ होगा मेरा लिखा पत्र जिसका जवाब आप भी लिख कर ही देंगे। तो फ़िर देर किस बात की। मुझे sms करें अपना पूरा पता (पिनकोड के साथ)। व्हाट्सएप से मैं हट गया हूँ तो वहाँ कुछ न भेजें।
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