रविवारीय: अंग्रेज़ी में कहते हैं की …

Detective examines a corkboard with maps and photos to solve a mystery.

आज भाषा और उस भाषा के सिनेमा को लेकर बड़ी बहस छिड़ी हुई है। क्या सिनेमा की कोई भाषा होती है? मुझे याद है जब मनोरंजन का साधन सिर्फ़ दूरदर्शन ही हुआ करता था तब अंतरराष्ट्रीय भारतीय फ़िल्म महोत्सव की कई फ़िल्में दूरदर्शन पर आती थीं। मैंने कई सारी भारतीय और विदेशी फ़िल्में देखीं। विश्व सिनेमा की ये सर्वश्रेष्ठ फ़िल्मों का प्रदर्शन कई शहरों में भी हुआ करता था। भोपाल में ऐसे आयोजन नियमित रूप से हुआ करते थे।

आज जब फिल्मों कई भाषाओं में डब करने का चलन बन चुका है तो मुझे याद आता है वो समय जब सिर्फ़ सबटाइटल अंग्रेजी में ही हुआ करते थे। ये सुविधा सभी फिल्मों में नहीं हुआ करती थी तो कई फ़िल्में उनकी मूल भाषा में ही देखी।

अगर हम कुछ देर के लिए भाषा को अलग रख दें और सिर्फ़ कहानी पर ध्यान दें तो ऐसी कई कहानियां पिछले दिनों देखी जो मूलतः किसी और भाषा में थीं और उनको हिंदी में डब किया गया था। कहानी को बदला नहीं गया बस उसकी अच्छी अलग अलग भाषा में डबिंग करी गई। 

अगर यही फ़िल्म या सिरीज़ मूल भाषा में ही रहती तो क्या होता? कहानी तो तब भी उतनी ही अच्छी होती। बस आपका उससे जुड़ाव भाषा के चलते कुछ कम हो जाता। लेकिन मनोरंजन तब भी होता।

भाषा की इस बहस में जो पता नहीं कहां से शुरू हुई और कहां पहुंच गई, हम ये भूल जाते हैं की आपको कहानी पसंद आती है। भाषा आपको वो कहानी समझने में मदद करती है। जब तीस साल पहले जब ए आर रहमान की पहली फ़िल्म \’रोजा\’ का संगीत आया था तो उसको पहले उसकी मूल भाषा में ही सुना था और पसंद भी किया था। इसका हिंदी अनुवाद तो बाद में सुनने को मिला। वैसे इसका रुक्मणि रुक्मणि गाना बहुत ही घटिया था और इसको हिंदी में सुनना एक दर्दनाक अनुभव था।

सिनेमा में अच्छे कंटेंट की कोई भाषा नहीं होती। हाँ अगर आप कुछ पढ़ रहे हों तो उसमें उस भाषा का ज्ञान ज़रूरी हो जाता है समझने के लिए। लेकिन सिनेमा और संगीत में ऐसे कोई बंधन नहीं हैं। ये भी एक कटु सत्य है की हिंदी छोड़ अन्य भाषाओं में हमेशा से ही अच्छी कहानी पर ज्यादा तवज्जो दी जाती रही है। उन्होंने साहित्य से कहानी चुनी जिससे अच्छी फ़िल्में मिलीं। ऐसा नहीं है की वहां मसाला फ़िल्में नहीं बनती। पुष्पा इसका अच्छा उदाहरण है। लेकिन उसमें भी कहानी पर मेहनत कर उसको अच्छा बनाया है। बहरहाल इस पोस्ट को भटकने से पहले मुद्दे पर वापस लाते हैं।

पिछले दो दिनों में दो बहुत अच्छी कहानी देखीं – दिल्ली क्राइम सीज़न 2 एवं गार्गी। इन दोनों कहानियों में कोई भी समानता नहीं है। पहली पुलिस के कामकाज से जुड़ी है तो दूसरी एक बेटी की कहानी है जो अपने पिता के साथ हुई तथाकथित गलती के खिलाफ़ लड़ाई लड़ती है।

अगर आपने दिल्ली क्राइम का पहला सीजन देखा हो तो आपको अंदाजा होगा दूसरे सीज़न में एक नया अपराध होगा और अपराधियों को पकड़ने की दिल्ली पुलिस की कहानी। इस बार भी वही टीम है मंझे हुये कलाकारों की। जब इसका पहला एपिसोड शुरू हुआ तो मुझे लगा शायद ये अंग्रेजी में है। लेकिन थोड़ी देर बाद हिंदी में शुरू हुई। वैसे इस सीज़न में शेफाली शाह का क़िरदार ने कुछ ज़्यादा ही अंग्रेजी का इस्तेमाल किया है। सीज़न 2 अच्छा है लेकिन पहले सीज़न के जैसे बांधने में थोड़ा कमज़ोर। शायद इसके पीछे ये कारण भी है की पहला सीज़न निर्भया केस से जुड़ा था और हमें उस घटना के बारे में लगभग सब जानकारी थी बस किस तरह पुलिस ने ये काम किया इसकी जानकारी नहीं थी। दिल्ली क्राइम का पहला सीज़न आज भी मेरे हिसाब से हिंदी का सबसे उम्दा काम है।

उस कामयाबी के चलते दूसरे सीज़न की बात होने लगी। शायद निर्माताओं पर भी दवाब था इसके चलते दूसरा सीज़न पर काम किया। ये कहने का मतलब ये कतई नहीं है की इसमें कुछ गलत है। दूसरे सीज़न में कहीं कोई कमी नहीं छोड़ी गई है लेकिन शायद हमारी उम्मीदें पहली सिरीज़ से बहुत बढ़ गई थीं। क्या इसका तीसरा सीज़न भी आयेगा? शायद। क्योंकि इस पांच एपिसोड की छोटी सी सिरीज़ के अंत में इसको खुला रखा गया है। शायद नए लोग हों। इंतज़ार करना पड़ेगा नई घोषणा का।

जो दूसरी बहुत ही बढ़िया कहानी देखी वो थी गार्गी। मूलतः तमिल में बनी इस फिल्म में सई पल्लवी का दमदार अभिनय है और एक ऐसी कहानी जो आपको अंदर तक झकझोर तक रख देगी। बहुत ही कमाल का लेखन है। भाषाई बहस में न पड़ते हुए सिर्फ़ इतना कहना चाहूंगा इस फ़िल्म को आपको देखने का मौक़ा नहीं छोड़ना चाहिए। सई पल्लवी की पहली फ़िल्म प्रेमम से ही मैं उनके अभिनय का प्रशंसक रहा हूं। बीच में एक दो फ़िल्में और देखीं उनकी लेकिन ये बहुत ही बेहतरीन फ़िल्म है। आप फ़िल्म के अंत के लिए बिल्कुल भी तैयार नहीं होंगे। आपको लगेगा कहानी अब बस खत्म और अंत भला तो सब भला। लेकिन कमाल की स्क्रिप्ट शायद इसे ही कहते हैं।

आज जब ये भाषा की बहस होती है तो लगता है अच्छा सिनेमा या कंटेंट देखने की चाह रखने वालों के लिए इससे अच्छा समय नहीं हो सकता है। आप फिल्में या ओटीटी दोनों पर भारत ही नहीं विश्व का अच्छा कंटेंट देख सकते हैं।