हर सवाल का जवाब नहीं मिल सकता

अंग्रेज़ी भाषा ही मेरा पढ़ाई का माध्यम रही और उसके बाद नौकरी भी अंग्रेज़ी की सेवा में शुरू की। अब भाषा का ज्ञान होना कोई ग़लत बात नहीं है और अगर ये आपकी आजीविका का साधन बनती है तो और भी अच्छा।

अगर 2017 नवंबर भोपाल यात्रा न की होती तो क्या आज 2020 जून में मैं ये ब्लॉग हिंदी में लिख रहा होता? ये बहुत ही गहरा प्रश्न है जिसका की जवाब ढूँढने लग जायें तो समय बर्बाद ही करेंगे। वैसे हम अक्सर ऐसे ही प्रश्नों में उलझ कर ही अपना समय बर्बाद करते हैं और मिलता है सिफ़र अर्थात 0। जैसा की मैं इस समय कर रहा हूँ।

तो अंग्रेज़ी से वैसे तो मेरा कोई बैर नहीं है। लेकिन अंग्रेजी भाषा में कुछ पेंच हैं जैसा की धर्मेंद्र जी ने फ़िल्म चुपके चुपके में समझाया था। जैसे चाचा, मामा, फूफा सब अंकल में सिमट जाते हैं, बड़ा अटपटा सा लगता है। लेक़िन उसी अंग्रेज़ी में क़माल का शब्द है फ़ैमिली – परिवार। हिंदी में आज से 20 वर्ष पहले परिवार में चाचा, मामा, ताऊ सब आते थे (अभी नहीं आते हैं)। लेक़िन अब न्यूक्लियर फैमिली हो गयी है और रिश्तेदार एक्सटेंड फ़ैमिली। मामा, चाचा के बच्चे कजिन हो गए हैं। मैं जब छोटा था तब सबको अपने परिवार में गिनता, पिताजी के पास एक कार भी नहीं थी लेक़िन रिश्तेदारों की कार भी अपनी गिनता। वो तो जब गैराज खाली रहता तब समझ में आया कि अपनी चीज़ क्या होती है।

ये जो ऊपर इतना समझाने का प्रयास कर रहा हूँ उसकी असल बात तो अब शुरू हो रही है। हर परिवार में सब तरह के स्वभाव वाले लोग होते हैं। यहाँ परिवार से मेरा मतलब है चाचा, मामा, ताऊ – अंग्रेज़ी वाली फैमिली। एक दो लोग होते हैं जिनसे आप बहुत आसानी से बात कर सकते हैं किसी भी बारे में और एक दो लोग होते हैं जिनके होने से आप असहज हो जाते हैं। और नमूने तो भरे होते हैं (उनके बारे में बाद में)।

जैसे मेरे रिश्ते के भाई बहन जो हैं इसमें से कुछ से बहुत नियमित रूप से मुलाक़ात होती रही और कुछ से सालाना वाली। जिनसे नियमित होती रही उनके मुकाबले सालाना वालों से संबंध कहीं बेहतर रहे। और सालाना वालों में से भी कुछ से ही ऐसे संपर्क बने रहे कि आज भी फ़ोन करते समय बात शुरू नहीं करनी पड़ती। इसके अलावा अब एक नीति बना ली है और उसी पर अमल करता हूँ।

भाषा ज्ञान से चलते हैं संस्कार पर क्योंकि आज का विषय यही है। हम अपने बचपन से अपनी अंतिम साँस तक अपने संस्कार के लिये जाने जाते हैं। अब ये संस्कार आप को घर से भी मिल सकते हैं या आप किसी को ये करता देख कर भी इसे अपना लेते हैं। मतलब फलाँ व्यक्ति खडूस है क्योंकि उसका व्यवहार ही वैसा है या फलाँ व्यक्ति को सिर्फ़ पैसों से मतलब है क्योंकि ये उसके संस्कार ही हैं कि उसको पैसे के अलावा कुछ दिखाई नहीं देता। या कोई ऐसा व्यक्ति जो सबसे अच्छे से बात करता है, सबकी मदद करता है लेक़िन लोग उसका सिर्फ़ फायदा ही उठाते हैं। बाक़ी दो श्रेणी के व्यक्तियों की तरह ये आख़िरी श्रेणी वाला व्यक्ति इसके बाद भी अपना स्वभाव तो नहीं बदल सकता। तो वो बहुत सारे अप्रिय अनुभव के बाद भी वही करता है जो उसका दिल कहता है।

हमारे जीवन में हर एक अनुभव का अपना एक महत्व होता है। भले ही वो कितने भी कटु या कितने भी मीठे क्यों न हों, उन अनुभव से हमें सीख ही मिलती है। कोशिश हमारी ये होनी चाहिये कि उन कटु अनुभव का रस हमारे जीवन में न आये और हम अपने अनुभव जैसा अनुभव उस किसी भी व्यक्ति को हमसे मिलने पर न होने दें।

हम सब कुछ जानते नहीं हैं लेक़िन प्रयास करें तो बहुत कुछ जान सकते हैं। इस प्रयास में – अज्ञानता से ज्ञान के इस प्रयास में आप को बस सही लोगों से मदद मांगनी है। जो ये जानते हैं ज्ञान बाँटने से बढ़ता है, वो आगे आकर आपकी मदद करेंगे। सावधान रहना है आपको ऐसे लोगों से, (अ) ज्ञानी व्यक्तियों से, जो अंदर से खोखले हैं और आपको भी उसी और धकेल देंगे। इन महानुभावों को पहचाने और दूर रहें।