भारत का रहने वाला हूँ, भारत की बात सुनाता हूँ

शास्त्रीय संगीत की समझ बिल्कुल नहीं है बस जो अच्छा लगता है वो सुन लेते हैं। मैंने पहले बताया था कैसे मेरा तबला सीखने का प्रयास विफल रहा उसके बाद सीखने का मन भी नहीं हुआ। लेकिन संगीत तो घर में चलता ही रहता था/है। शास्त्रीय नही तो फ़िल्मी ही सही

घर में जितने सदस्य सबकी उतनी पसंद। आज के जैसे उस समय तो सबके पास मोबाइल या टेप तो होता नहीं था। एक रेडियो, टेप या टीवी हुआ करता था और सब उसी को देखते सुनते। इसका परिणाम ये हुआ की हर तरह का कार्यक्रम देखने, सुनने को मिला। उसमें से सबने अपनी अपनी पसंद चुन ली। किसी को किशोर कुमार तो किसी को मोहम्मद रफ़ी या कुमार सानू पसंद था। अपने गायक के गाना सुनने को मिल जाये तो लगा लॉटरी जीत ली।

आज जो डिमांड सर्विस है – आपको जब उदित नारायण का कोई गाना देखना हो तो देख लीजिये, उसमें वो मज़ा कभी नहीं आएगा जैसा तब आता था जब आप अपने किसी काम में व्यस्त हों और अचानक आपको बुलाया जाये कोई नया गाना आने पर। अच्छा उसमें भी अगर सलमान का गाना (जो बहन को पसंद है) या अनिल कपूर (जो भाई को पसंद है), अगर मैंने पहले देख लिया तो वो भी एक नोकझोंक का कारण बन जाता था।

अब तो नया गाना आने के पहले से उसके बारे में बताना शुरू कर देते हैं और फ़िल्म रिलीज़ होने के पहले ही गाने देख देख कर बोर हो जाते हैं। नतीजा ये होता है की फ़िल्म में गाना देखने का मज़ा ही ख़त्म हो जाता है।

बात शुरू शास्त्रीय संगीत से हुई थी और पहुंच कहीं और गयी। अब वापस शास्त्रीय संगीत की तरफ़ चलते हैं। उन दिनों दिन के अलग पहर की राग के कैसेट निकले थे। मैंने कुछ ख़रीद लिये और सुने और इससे मेरा परिचय हुआ किशोरी अमोनकर जी से। उनकी आवाज़ में ये राग जयजयवंती बहुत ही सुंदर लगती। जब मुम्बई में उनसे साक्षात मिलने का मौका मिला तो मुझे लगा मानो कोई मनोकामना पूरी हो गयी। लेक़िन शास्त्रीय संगीत के सीमित ज्ञान के चलते मैंने उनसे उस संबंध में कोई बात नहीं करी। बाद में एक सहयोगी ने बताया अच्छा हुआ नहीं पूछा क्योंकि किशोरी ताई वहीं क्लास ले लेती मेरी।

ऐसा नहीं है फ़िल्म संगीत के बारे में बहुत जानकारी है लेक़िन कामचलाऊ से ज़्यादा है। इसके बावजूद जब पार्श्व गायिका साधना सरगम जी (उनकी आवाज़ में जादू है) के एक एल्बम के लांच में गया तो भी बात नहीं कर पाया। उनको साक्षात सुनने को मिला वही बहुत था। भीमसेन जोशी जी के कार्यक्रम के बारे में तो बता ही चुका हूँ।

आज इस यात्रा पर क्यों?

दरअसल दूरदर्शन पर आज देश राग वाला वीडियो देख रहा था। तब लगा की अपने ही देश के कितने सारे शास्त्रीय संगीत के महारथियों के बारे में जानकारी ही नहीं। और ये सिर्फ़ संगीत तक ही सीमित नहीं है। हम अपने ग्रंथों के बारे में ज़्यादा नहीं जानते। वेदों के नाम मालूम है लेकिन उन वेदों में क्या ज्ञान है, कैसे हम इसका लाभ ले सकते हैं उस जानकारी से बहुत से लोग अनजान हैं।

हम बाहर के कई कलाकारों, उनकी अलग अलग विधायों के बारे में तो जानते हैं लेक़िन अपने घर के बारे में अनजान हैं। उस ज्ञान से कोई आपत्ति नहीं है। अच्छी बात है अगर किसी को पता है मोज़ार्ट या बीथोवन के बारे में और आप उनको सुनते हैं। लेकिन अपनी विरासत के बारे में भी कुछ ऐसी ही जिज्ञासा रखें। जानते हैं तो बाकी लोगों के साथ शेयर करें (मेरे साथ भी)।

जो हमें विरासत में मिला है उसमें कोई कमी न करते हुये बल्कि कुछ अपना भी जोड़ते हुये, इसको हमें भी आने वाली पीढ़ियों को सौंपना है। ये जो प्रक्रिया है ये बहुत ही महत्वपूर्ण है क्योंकि ये निरंतर चलने वाली है।

https://youtu.be/QiB1aDTnfLY

फ़ोटो: ANI twitter

मिले सुर मेरा तुम्हारा, तो सुर बने हमारा

फ़िल्मी संगीत में रमे हमारे परिवार में बहुत कम शास्त्रीय संगीत सुनने को मिला। लेक़िन बाद में ऊपर वाले की मेहरबानी से हमारी हर सुबह शास्त्रीय संगीत से होने लगी। यहाँ ऊपरवाले से मेरा मतलब भगवान से नहीं लेकिन उन्हीं के द्वारा मिलवाये गये हमारे सरकारी मकान में ऊपर वाले घर में रहने वाले सज्जनलाल भट्ट जी का जो की पास ही के सरकारी कॉलेज में शास्त्रीय संगीत के प्रोफ़ेसर थे।

अगर भट्ट अंकल शहर में हैं तो सुबह सुबह उनका रियाज़ शुरू हो जाता। वो गला साफ़ करने के लिये आलाप लगाते और वो हमारे उठने का समय। उसके बाद शास्त्रीय संगीत आया आल इंडिया रेडियो या विविध भारती के सौजन्य से। सुबह संगीत सरिता कार्यक्रम में कोई एक राग और उसके बारे में ज्ञान।

लेकिन हमने कभी भट्ट अंकल के शास्त्रीय संगीत के ज्ञान का लाभ नहीं लिया। उनके पास कभी तबला सीखने गये थे लेकिन कुछ दिन बाद जोश ठंडा पड़ गया और सब धरा का धरा रह गया। दूरदर्शन पर उन दिनों संगीत का अखिल भारतीय कार्यक्रम होता था लेकिन उसको देखते नहीं थे। किसी नेता की मृत्यु पर राजकीय शोक के समय यही शास्त्रीय संगीत बजता रहता।

एक लंबे समय बाद शास्त्रीय संगीत की जीवन में वापसी हुई जब भाई ने भीमसेन जोशी और लता मंगेशकर जी के गाये भजन की सीडी दी। इससे पहले लता मंगेशकर जी को जानते थे लेकिन भीमसेन जोशी जो को मिले सुर मेरा तुम्हारा की बदौलत जानते थे। लेकिन जब से वो भजन सुने जोशी जी के फैन हो गये। उनकी गायकी, उनकी आवाज़ आपको एक अलग ही दुनिया में ले जाती है। मैंने अपने इस शास्त्रीय संगीत के प्रेम को बनाये रखने के लिये कई सारे कैसेट और सीडी ख़रीदी।

लेक़िन जीवन में कभी भी ये नहीं सोचा था की साक्षात जोशी जी को सुनने को मिलेगा। मुम्बई में काम के चलते किशोरी अमोनकर जी से बात करने का, उन्हें सुनने का मौक़ा मिला। शायद दिल में कभी इच्छा रही होगी तभी तो एक दिन अचानक पीटीआई में मेरी सहयोगी निवेदिता खांडेकर जी ने बताया की उनके पास पंडितजी के एक शो के पास हैं। बस फ़िर कुछ सोचने के लिये बचता ही नहीं था। हम दोनों पहुँच गये उनके कार्यक्रम में और उनको सामने बैठकर सुना। ये जीवन में याद रखने योग्य क्षण था और इसको आज भी कई बार याद करता हूँ।

पंडितजी को आज भी सुनता हूँ और अक्सर सुबह उनके और लता जी के गाये भजनों से ही होती है। आप भी आनंद लें संगीत के दो दिग्गजों की आवाज़ का।

https://youtu.be/VF8RMZZXlWg