एक दौर वो भी था, एक दौर ये भी है

इन दिनों फ़िल्म कबीर सिंह को लेकर बवाल मचा हुआ है। जहाँ कुछ लोगों को इसकी कहानी बहुत ही दकियानूसी, बहुत गलत लगती है वहीं कुछ लोग अपने आधार कार्ड पर ग़लत उम्र दिखाकर फ़िल्म देखने की कोशिश करते हुये पकड़े गये हैं। मतलब फ़िल्म की कमाई में कोई कमी नहीं है। मतलब ये की हमारी जनता, जिसमें महिला वर्ग भी शामिल है, को इन सबसे कोई फ़र्क नहीं पड़ता। कबीर सिंह के बाद आई एक और अच्छी फ़िल्म आर्टिकल 15 चार दिन में अपना दम तोड़ चुकी है। लोगों ने अपनी पसंद साफ साफ बता दी है।

मैंने अभी तक कबीर सिंह देखी नहीं है क्योंकि मैंने इसकी ओरिजनल अर्जुन रेड्डी देखी है और मुझे यही डर है कि मैं दोनों फिल्मों की तुलना करने में ही अपना समय न बिता दूं। लेक़िन इस पोस्ट को लिख़ने के पीछे न तो क्यों कबीर सिंह महान है और बाकी सब बक़वास और न ही कुछ और। कबीर सिंह दरअसल हमारी हिंदी फ़िल्म इंडस्ट्री में आये बदलाव को दर्शाता है। इसका पहला नमूना है इसका पोस्टर।

बरसों पहले करिश्मा कपूर और गोविंदा की फ़िल्म आयी थी खुद्दार। उसमे एक गाना था जिसके बोल थे सेक्सी सेक्सी मुझे लोग बोलें। इसको लेकर बहुत हंगामा हुआ और अंततः बोल सेक्सी से बेबी हुये और तब जाके फ़िल्म रिलीज़ हो पाई। आमिर ख़ान की सीक्रेट सुपरस्टार में भी एक गाना था मैं सेक्सी बलिये और ये एक पारिवारिक फ़िल्म थी। कहने का मतलब है अब बहुत सी ऐसी बातें जो आज से 15-20 साल पहले आपत्तिजनक लगती थीं आज वो सब मान्य हैं। चाहे वो इस तरह का किस करने वाला पोस्टर ही क्यों न हो। फ़िल्म अगर एडल्ट है तो क्या, फ़िल्म का पोस्टर सभी अखबारों में छपा और बच्चे बूढ़े सभी ने देखा भी। और शायद यही देखकर लोग फ़िल्म देखने भी पहुँचे हों इससे इनकार नहीं किया जा सकता। लेक़िन फ़िल्म भी लोगों को पसंद आई होगी नहीं तो सनी लियोनी आज हिंदी फ़िल्म इंडस्ट्री में सबसे ज़्यादा कमा रही होतीं।

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एडल्ट फ़िल्म देखने का मज़ा ही कुछ और होता है। वो दोगुना हो जाता है जब आप देखने के लिये योग्य नहीं हों। जिन दिनों राजकपूर की सत्यम शिवम सुंदरम आयी तो घर के बड़ों ने उसे देखने का प्लान बनाया। दादाजी जो सभी फिल्में साथ में देखते थे, उनसे कहा गया कि ये फ़िल्म आपके देखने की नहीं है। अब ये सबके लिये थोड़ी परेशानी वाली बात थी कि पिताजी के साथ शशि कपूर और ज़ीनत अमान के उपर फिल्माये गये कैसे देखे जा सकते हैं। आजकल तो लगभग सभी फिल्मों में ऐसे सीन रहते हैं। कबीर सिंह में भी हैं लेक़िन ये एक कारण फ़िल्म को 200 करोड़ की कमाई नहीं करा सकता।

लेकिन मुझे न तो पद्मावत और न ही कबीर सिंह का विरोध समझ आता है। अच्छी बात है कि जो विरोध कर रहे हैं उन्हें इसमें जो किस सीन हैं उससे कोई परेशानी नहीं है। बस फ़िल्म की कहानी बहुत कुछ ग़लत दिखा जाती है। प्रीति जैसी लड़कियाँ असल जिंदगी में नहीं होती हैं। ये एक फ़िल्म है। आपके मनोरंजन के लिये है। पसंद आये तो देख आयें, नहीं तो घर पर रहें। जैसे उस रात मेरे दादाजी ने माँ को घर पर छोड़ फ़िल्म देखने की अपनी इच्छा पूरी करी।