रविवारीय: ये संग है उमर भर का

इस साल 26 जनवरी की बात है जब फ़िल्म रंग दे बसंती के बारे में पढ़ रहा था। वैसे तो इस फ़िल्म से जुड़ी बहुत सी बातें बेहद रोचक हैं औऱ मैंने लगभग मन भी बना लिया था क्या लिखना है, लेक़िन जब तक लिखने का कार्यक्रम हुआ तो कहानी बदल गयी।

आज जब लता मंगेशकर जी ने अपने प्राण त्यागे, तब लगा जैसे हर कहानी को बताने का एक समय होता है वैसे ही शायद उस दिन ये पोस्ट इसलिये नहीं लिखी गयी। फ़िल्म के बारे फ़िर कभी, फ़िलहाल इसके एक गाने के बारे में जिसे लता जी ने रहमान के साथ अपनी आवाज़ दी है।

जब फ़िल्म लिखी गयी थी औऱ उसके गाने तैयार हुये थे तब ये गाना उसका हिस्सा थे ही नहीं। फ़िल्म पूरी शूट हो गयी औऱ उसके पोस्ट प्रोडक्शन पर काम चल रहा था। रहमान जो फ़िल्म के संगीतकार भी हैं, इसका बैकग्राउंड संगीत भी दे रहे थे। जब आर माधवन की मृत्यु वाला सीन चल रहा था औऱ उसका बैकग्राउंड संगीत दिया जा रहा था तब निर्देशक राकेश ओमप्रकाश मेहरा एवं गीतकार प्रसून जोशी को ये आईडिया आया। ये निर्णय लिया गया की उस पूरे प्रसंग के लिये संगीत के बजाय गाने का इस्तेमाल किया जायेगा।

दरअसल मेहरा बहुत दिनों से लता जी से इस गाने के बारे में बात कर रहे थे। लेक़िन किन्हीं कारणों से ये हो नहीं पा रहा था। जब लता जी से फ़िर से बात हुई औऱ वो गाने के लिये तैयार हुईं तो उन्होंने कहा गाना क्या है कुछ भेज दीजिए। मेहरा ने कहा आप रहमान को जानती हैं। उनका गाना तैयार होते होते होगा औऱ प्रसून जोशी जी लिखते लिखते लिखेंगे। लेक़िन मैंने शूटिंग करली है। उन्होंने राकेश मेहरा से पूछा क्या ऐसा भी होता है? मेहरा ने उन्हें बताया आजकल ऐसा भी होता है।

लता जी चेन्नई में रिकॉर्डिंग से तीन दिन पहले पहुँच कर गाने का रियाज़ किया औऱ तीसरे दिन जब रिकॉर्डिंग हुई तो पाँच घंटे वो स्टूडियो में खड़ी रहीं। राकेश मेहरा को भी लगभग 80 साल की लता मंगेशकर का काम के प्रति लगन देखकर बड़ा आश्चर्य हुआ। जब फ़िल्म का संगीत आया तो ये गाना बाक़ी सभी गानों के पीछे कहीं छुप से गया था। लेक़िन आज बड़ी तादाद में सुनने वाले इसको पसंद करते हैं।

अब किसी गाने में गायक, संगीतकार या गीतकार किसका सबसे अहम काम होता है? जब लता जी से पूछा गया कि उनका कोई गीत जिसे सुनकर उनके आँसूं निकल आते हों तो उन्होंने कहा \”गाने से ज़्यादा मुझे उसके बोल ज़्यादा आकर्षित करते हैं। अगर अच्छी शायरी हो तो उसे सुनकर आंखों में पानी आ जाता है।\”

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लता मंगेशकर औऱ मीना कुमारी। (फ़ोटो – लता मंगेशकर जी के फेसबुक पेज से साभार)

गानों को लेकर जो बहस हमेशा छिड़ी रहती है उसमें गायक औऱ संगीतकार को ही तवज्जो मिलती है। गीतकार कहीं पीछे ही रह जाता है। लता जी शायद शब्दों का जादू जानती थीं, समझती थीं इसलिये उन्होंने संगीत औऱ गायक से ऊपर शब्दों को रखा।

लता मंगेशकर जी को शायद एक बार साक्षात देखा था देव आनंदजी की एक फ़िल्म की पार्टी में। मुम्बई में काम के चलते ऐसी कई पार्टियों में जाना हुआ औऱ कई हस्तियों से मिलना भी हुआ। लेक़िन कभी ऑटोग्राफ़ नहीं लिया। अच्छा था उन दिनों मोबाइल फ़ोन नहीं होते थे।

ख़ैर, पीटीआई में जब काम कर रहे थे तब नूरजहां जी का देहांत हो गया। ये रात की बात है। उनके निधन पर हिंदी फिल्म जगत में सबकी प्रतिक्रिया ले रहे थे। नूरजहाँ को लता मंगेशकर अपना गुरु मानती थीं। लेक़िन लता जी मुम्बई में नहीं थीं। अब उनको ढूँढना शुरू किया क्योंकि उनकी प्रतिक्रिया बहुत ख़ास थी। देर रात उनको ढूँढ ही लिया हमारे संवाददाता ने औऱ उनकी प्रतिक्रिया हमें मिल ही गयी।

उनके कई इंटरव्यू भी देखें हैं। एक जो यादगार था वो था प्रीतिश नंदी के साथ। वैसे देखने में थोड़ा अटपटा सा ज़रूर है क्योंकि नंदी उनसे अंग्रेज़ी में ही सवाल करते रहे लेक़िन लता जी ने जवाब हिंदी में ही दिया। मेरे हिसाब से ये एकमात्र इंटरव्यू था जिसमें लता जी से प्यार, मोहब्बत औऱ शादी के बारे में खुल कर पूछा गया। हाँ ये भी है की लता जी ने खुलकर जवाब नहीं दिया। रिश्तों के ऊपर एक सवाल पर तो उन्होंने कह भी दिया की वो इसका जवाब नहीं देंगी।

इसी इंटरव्यू में जब उनसे ये पूछा गया की क्या वो दोबारा लता मंगेशकर बन कर ही जन्म लेंगी तो उनका जवाब था, \”न ही जन्म मिले तो अच्छा है। औऱ अगर वाक़ई जन्म मिला मुझे तो मैं लता मंगेशकर नहीं बनना चाहूँगी।\” जब पूछा क्यूँ, तो हँसते हुये लता जी का जवाब था, \”जो लता मंगेशकर की तकलीफ़ें हैं वो उसको ही पता है।\”

अब लता जी अपने गीतों के ज़रिये हमारे बीच रहेंगी।

मिले सुर मेरा तुम्हारा, तो सुर बने हमारा

फ़िल्मी संगीत में रमे हमारे परिवार में बहुत कम शास्त्रीय संगीत सुनने को मिला। लेक़िन बाद में ऊपर वाले की मेहरबानी से हमारी हर सुबह शास्त्रीय संगीत से होने लगी। यहाँ ऊपरवाले से मेरा मतलब भगवान से नहीं लेकिन उन्हीं के द्वारा मिलवाये गये हमारे सरकारी मकान में ऊपर वाले घर में रहने वाले सज्जनलाल भट्ट जी का जो की पास ही के सरकारी कॉलेज में शास्त्रीय संगीत के प्रोफ़ेसर थे।

अगर भट्ट अंकल शहर में हैं तो सुबह सुबह उनका रियाज़ शुरू हो जाता। वो गला साफ़ करने के लिये आलाप लगाते और वो हमारे उठने का समय। उसके बाद शास्त्रीय संगीत आया आल इंडिया रेडियो या विविध भारती के सौजन्य से। सुबह संगीत सरिता कार्यक्रम में कोई एक राग और उसके बारे में ज्ञान।

लेकिन हमने कभी भट्ट अंकल के शास्त्रीय संगीत के ज्ञान का लाभ नहीं लिया। उनके पास कभी तबला सीखने गये थे लेकिन कुछ दिन बाद जोश ठंडा पड़ गया और सब धरा का धरा रह गया। दूरदर्शन पर उन दिनों संगीत का अखिल भारतीय कार्यक्रम होता था लेकिन उसको देखते नहीं थे। किसी नेता की मृत्यु पर राजकीय शोक के समय यही शास्त्रीय संगीत बजता रहता।

एक लंबे समय बाद शास्त्रीय संगीत की जीवन में वापसी हुई जब भाई ने भीमसेन जोशी और लता मंगेशकर जी के गाये भजन की सीडी दी। इससे पहले लता मंगेशकर जी को जानते थे लेकिन भीमसेन जोशी जो को मिले सुर मेरा तुम्हारा की बदौलत जानते थे। लेकिन जब से वो भजन सुने जोशी जी के फैन हो गये। उनकी गायकी, उनकी आवाज़ आपको एक अलग ही दुनिया में ले जाती है। मैंने अपने इस शास्त्रीय संगीत के प्रेम को बनाये रखने के लिये कई सारे कैसेट और सीडी ख़रीदी।

लेक़िन जीवन में कभी भी ये नहीं सोचा था की साक्षात जोशी जी को सुनने को मिलेगा। मुम्बई में काम के चलते किशोरी अमोनकर जी से बात करने का, उन्हें सुनने का मौक़ा मिला। शायद दिल में कभी इच्छा रही होगी तभी तो एक दिन अचानक पीटीआई में मेरी सहयोगी निवेदिता खांडेकर जी ने बताया की उनके पास पंडितजी के एक शो के पास हैं। बस फ़िर कुछ सोचने के लिये बचता ही नहीं था। हम दोनों पहुँच गये उनके कार्यक्रम में और उनको सामने बैठकर सुना। ये जीवन में याद रखने योग्य क्षण था और इसको आज भी कई बार याद करता हूँ।

पंडितजी को आज भी सुनता हूँ और अक्सर सुबह उनके और लता जी के गाये भजनों से ही होती है। आप भी आनंद लें संगीत के दो दिग्गजों की आवाज़ का।

https://youtu.be/VF8RMZZXlWg