ये लेखा जोखा, बही खाते वाला काम तो हम कायस्थों के ही ज़िम्मे है। इसलिये जब कई लोगों का पिछले दशक का लेखा जोखा पढ़ रहा था तो सोचा एक बार अपना भी लिखा जाये। इस फ्लैशबैक में बड़ी खबरें तो आसानी से याद रह जाती हैं, लेकिन छोटी छोटी बातें जिनका असर ज़्यादा समय तक रहता है वो बस ऐसे ही कभी कभार याद आ जाती हैं।
2010 के ख़त्म होते होते ज़िन्दगी को एक नई दिशा मिल गयी। उसके पहले कुछ न कुछ चल रहा था लेकिन भविष्य कुछ दिख नहीं रहा था। और ये जो नई दिशा की बात कर रहा हूँ वो दरअसल कुछ समय बाद दिखाई दी। हम लोग जिस समय हमारे जीवन में ये घटनाक्रम चल रहे होते हैं, उस समय उससे अनजान ही रहते हैं। वो तो थोड़े समय बाद समझ में आता है की क्या हुआ है या हो गया है। थोड़े और समय बाद समझ आता है उसका असर।
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2011 से 2019 तक का समय काम के हिसाब से स्वर्णिम रहा। बहुत कुछ नया सीखने को मिला और पिछले दशक के अपने पुराने अनुभवों से जो सीखा उसे अमल करने का मौका मिला। इस दौरान ऐसे कई लोग मिले जिन्होंने मुझे बहुत कुछ सिखाया। ये मेरे सीनियर जैसे देबाशीष घोष, संदीप अमर, मनीष मिश्रा, नीपा वैद्य और मेरे बहुत से टीम के सदस्य जिनमें प्रमुख रहे आमिर सलाटी, आदित्य द्विवेदी, मोहम्मद उज़ैर, नेहा सिंह। वैसे सीखा सभी से लेकिन जिनके नाम लिये हैं उनसे मिली सीख याद रही।
जो मेरे सीनियर हैं उनसे मैंने काम करने के कई नये गुर तो सीखे ही उनसे जीने का फ़लसफ़ा भी मिला। 2014 के लोकसभा चुनाव के समय मुझे काम करने का सौभाग्य मिला कुणाल मजूमदार के साथ। जब कुणाल से पहली बार मिला तो इसका अंदाज़ा नहीं था कुणाल का नेटवर्क कितना कमाल का है। उनके ज़रिये आज के कई चर्चित लेखकों ने उस समय हमारे लिये लेख लिखे। कुणाल फ़ोन पर सम्पर्क कर बात करते और स्टोरी या वीडियो तैयार। लेकिन कुणाल से मिल कर आपको इस बात का एहसास ही नहीं होता। इतने समय में कुणाल में कोई बदलाव नहीं आया है। वो आज भी वही हैं या कहूँ समय और अनुभव के साथ और बेहतर इंसान बने हैं तो कुछ ग़लत नहीं होगा।
जिस समय हम लोग ये कर रहे थे उस समय चुनाव की उठापटक शुरू थी। लेकिन इस सबके बीच सभी काम अच्छे से हुये और 16 मई 2014 को जब परिणाम आया तो हमारा ट्रैफिक का रिकॉर्ड बन गया। ये उस समय के हमारे टीम के सभी सदस्यों की मेहनत ही थी जिसके चलते हमारी वेबसाइट को लोग जानने लगे।
लेकिन अगले तीन साल में मैनेजमेंट में हुये बदलाव के चलते सब ख़त्म हो गया। मतलब तीन सालों में मैंने अपनी टीम के साथ मेहनत कर एक ब्रान्ड बनाया और फ़िर उसको ख़त्म होते हुये देखा। ये शायद जीवन की सबसे बड़ी सीख भी थी।
जीवन की दूसरी बडी सीख मिली वो शायद किसी का व्हाट्सऐप स्टेटस था – कॉरपोरेट में कोई किसी का सगा नहीं होता *+#&$#। ये वाली सीख थोड़ी देर से समझ में आई लेकिन अभी भी कभी कभी फ़िर गलती दोहरा देता हूँ। नये लोगों के साथ।
इसका एक और भाग होगा। अब दशक के लिये इतना लिखना तो बनता है।
https://youtu.be/pGYjHQbV1KE