किसी भी कहानी का समय जब आता है तब आता है। अब इस पोस्ट को ही लें। इसको लिखने की प्रेरणा मिले हुये एक अरसा हो गया। मज़ेदार बात ये कि आलस त्यागते हुये पोस्ट लिख भी ली लेक़िन किसी न किसी कारण से इसको पोस्ट नहीं कर पाया। और अब जो चल रहा है मीडिया में उसके बाद आज ऐसा लगा यही सही समय है।
दुख, ग़म की मार्केटिंग भी एक कला है। मुझे इसका ज्ञान मेरे डिजिटल सफ़र के शुरू में तो नहीं लेक़िन कुछ समय बाद मिला। लोगों को दुःख बेचो मतलब ऐसी कहानी जो उनके दिल में वेदना जगाये, उन्हें व्यथित करे। अगर आपने लॉकडाउन के दौरान मीडिया में चल रही खबरों पर ध्यान दिया हो तो ऐसी कई ख़बरों ने ख़ूब सुर्खियां बटोरीं।
आज की इस पोस्ट के बारे में लिखने का ख़याल तो लंबे समय से बन रहा था लेक़िन फेसबुक पर आदित्य कुमार गिरि की पोस्ट पढ़ने के बाद लिखने का कार्यक्रम बन ही गया।
दुःख से दुःख उपजता है और कोई भी मनुष्य दुःख से जुड़ना नहीं चाहता। इसलिए लोग आपके दुःख में रुचि नहीं लेते क्योंकि मनुष्य का स्वभाव आनन्द में रहना है। आप दुःख को खोलकर बैठ जाइए, लोग आपसे कतराने लगेंगे।
भगवान को चिदानंद इसलिए कहा गया है क्योंकि वहां केवल आनन्द है। आप दुःख की दुकानदारी करके लोगों को पकड़ना चाहते हैं। लोग भाग जाएँगे।
इस संसार में जिसे भी पकड़ना चाहेंगे वह भागेगा। व्यक्ति प्रकृत्या स्वतंत्र जीव होता है। वह किसी भी तरह के बंधन को स्वीकार नहीं करता। इसलिए आप जब-जब, जिस-जिस पर बन्धन डालते हैं व्यक्ति तब-तब आपसे भागता है।
जीवन का एक ही सूत्र, एक ही मन्त्र है और वह यह कि आनन्द में रहिए। आनन्द आकर्षित करता है। अपने भीतर के खालीपन को सिर्फ अपने स्वभाव में रहकर ही आनन्द से भरा जा सकता है। दूसरे आपके खालीपन को कभी भी भर नहीं सकते।
व्यक्ति अपने अकेलेपन को दूसरों की उपस्थिति से भरना चाहता है लेकिन दूसरा आपके रीतेपन से नहीं आपके भरे रूप से खिंचते हैं। इसलिए दुःख का प्रचार बन्द कीजिए। दुःख को दिखाने से सहानुभूति मिलेगी, आनन्द में होंगे तो प्रेम मिलेगा।
अपने दुःखों और कष्टों को बढ़ा चढ़ाकर दिखाना एक किस्म का बेहूदापन है। इस तरह के लिजलिजेपन से प्रेम नहीं उपजता। आप जबतक दूसरों को प्रभावित करने के सम्बंध में सोचते रहेंगे, ख़ुद से दूर होते रहेंगे। और ख़ुद से दूर होना ही असल नर्क है।
किसी भी रियलिटी शो को देखिये। उसमें जो भी प्रतिभागी रहते हैं उनमें से किसी न किसी की एक दर्द भरी दास्ताँ होती है। शो के पहले एपिसोड से ही दर्शकों को ये बताया जाता है की वो कितनी मुश्किलें झेल कर उस मंच तक पहुंचा है।
पिछले दिनों ट्वीटर पर इसी से जुड़ा एक बड़ा ही दिलचस्प वाक्या हुआ। इंडियन आइडल शो में ऐसे ही प्रतियोगियों के बारे में बार बार बताते रहते हैं। एक दर्शक ने इस पर कहा की शो को गाने या इससे जुड़े विषय पर फ़ोकस रखना चाहिये औऱ इन बातों से बचना चाहिये। इन सब से लोग उसको नहीं चुनते जो उसका हक़दार है बल्कि उसे जिसकी कहानी से वो ज़्यादा व्यथित हो जाते हैं।
इस पर शो के एक जज विशाल ददलानी ने कहा की किसी भी कलाकार के बारे में फैंस जानना चाहते हैं। जिनको गाना सुनना है या कमेंट्स सुनने हैं वो ये सुनने के बाद अपना टीवी म्यूट कर सकते हैं।
इस पर कई लोगों ने प्रतिक्रिया दी औऱ बताया कैसे शो बनाने वालों ने दर्शकों के मन में सहानुभूति जगाने के लिये कुछ ज़्यादा ही दिखा दिया। वैसे मुझे नहीं पता जो भी कहानियाँ दिखाई जाती हैं उनमें कितनी सच्चाई है, लेक़िन मीडिया से जुड़े होने के कारण मेरी आँखों के सामने कई बार कहानियों के रिटेक हुये हैं।
टीवी पर आने वाले कई शो में ये रोना धोना दरअसल कैमरे के लिये ही होता है। इन आरोपों से मिस्टर परफेक्शनिस्ट आमिर खान भी नहीं बचे हैं। उनके शो सत्यमेव जयते में ऐसा कई बार हुआ। ऐसा ही एक और संगीत से जुड़ा शो था जिसमें एक दिव्यांग प्रतियोगी था। उनका गाना उतना अच्छा नहीं था लेक़िन शो को उस प्रतियोगी के ज़रिये अच्छी रेटिंग मिल रही होगी शायद इसलिये काफ़ी समय तक वो शो में रहा लेक़िन जीता नहीं।
भारत का एक बड़ा हिस्सा मध्यम वर्गीय है और उन सभी के पास कुछ न कुछ ऐसी कहानी बताने के लिये होगी। संघर्ष सभी के जीवन में होता है उसका स्तर अलग हो सकता है। लेक़िन होता ज़रूर है। लेक़िन ये एक चलन सा भी बन गया है की लोग अपने संघर्ष को बड़े ही रोमांटिक अंदाज़ में बताते हैं। सिनेमाजगत में तो लगभग हर कलाकार के पास ऐसी ही कुछ कहानी होती है। किसी ने दस लोगों के साथ कमरा शेयर किया या लोकल के धक्के खाये।
आपके अनुभव किसी न किसी की ज़रूर मदद करेंगे लेक़िन उसके लिये आपको अपनी कहानी बताने का अंदाज़ बदलना होगा। हर बार वो ट्रैजिक स्टोरी सुना कर आप ट्रेजेडी किंग या क्वीन नहीं बन जायेंगे। अलबत्ता लोग ज़रूर आपसे कन्नी काटने लग जायेंगे।
ऐसी ही कहानी आपको आईपीएल के कई खिलाड़ियों के बारे में देखने या पढ़ने को मिलेगी। लेक़िन जब वो खिलाड़ी मैदान में उतरता है तो उसका जो भी संघर्ष रहा हो, पिच पर पहुँचने के बाद सिर्फ़ और सिर्फ़ ये मायने रखता है की वो अपने बल्ले से या गेंदबाजी से क्या कमाल दिखाता है।
पत्रकारिता बनाम व्हाट्सएप चैट
अब आते हैं आजकल जो चल रहा है। रिपब्लिक चैनल के मालिक और पत्रकार अर्णब गोस्वामी की कुछ व्हाट्सएप चैट इन दिनों ख़ूब शेयर की जा रही हैं। मामला है भारतीय जवानों पे हमले का और उनका कहना कि उन्होंने उसपर अच्छा काम किया है। मतलब उनकी चैनल को अच्छा ट्रैफिक मिला।
उनके इस कथन पर सबको घोर आपत्ति हो रही है। लेक़िन ये मीडिया का वो चेहरा है जिसके बारे में लोग कम बात करते हैं। आपने ये न्यूज़ चैनल को चुनाव या बजट पर तो अपनी पीठ ख़ुद थपथपाते देखा होगा। लेक़िन कम ही ऐसे मौक़े आये जब किसी त्रासदी पर कवरेज को लेकर ऐसा हुआ।
मैं अपने अनुभव से बता रहा हूँ आज जितने भी तथाकथित पत्रकार इस चैट पर घड़ियाली आंसू बहा रहे हैं या अर्णब की तरफ़ उँगली उठा रहे हैं वो ख़ुद त्रासदियों को बेच बेच कर आगे बढ़े हैं। इस पूरे प्रकरण में एक बात औऱ साफ़ करना चाहूँगा की न तो मुझे अर्णब या उनकी पत्रकारिता के बारे में कुछ कहना है।
मॉरल ऑफ द स्टोरी: आपका संघर्ष, आपका दुःख बहुत निजी होता है। लोग संवेदना प्रकट करेंगे, आपसे सहानुभूति भी रखेंगे। लेक़िन आपको दुःख के उस पार का सफ़र भी तय करना होगा। क्योंकि सुख के सब साथी, दुःख में न कोय।