तेरी दो टकियाँ दी नौकरी वे मेरा लाखों का सावन जाये

मुंबई में और देश के बाक़ी हिस्सों में भी बारिश मुम्बई की बारिश के अपने किस्से कहानियाँ हैंचालू है। वैसे जो शहर खूबसूरत हैं वो हर मौसम में खूबसूरत ही लगते हैं। लेक़िन कुछ ख़ास आनंद कम ही लिया हैमौसम में इन शहरों की खूबसूरती और निदिल्ली की सर्दियां बेहदखर जाती है। चूँकि बात मुम्बई की चल रही है तो वैसे तो इस शहर को कांक्रीट जंगल कहते हैं (है भी), लेक़िन बारिश में ये शहर एक अलग ही शहर लगता है।

आप जो पानी से भरी सड़कें या सबवे समाचारों में देखते हैं वो भी बारिश का एक दूसरा पहलू है। लेक़िन ये तो हर मौसम पर लागू होता है। बारिश की अपनी परेशानी है तो गर्मी की अपनी दिक्कतें हैं। लेक़िन दिक्कतों से परे ये सभी मौसम हर शहर का क़िरदार दिखाते हैं।

भोपाल में रहने का फायदा ये रहा की सभी मौसमों का लुत्फ़ उठाया। गर्मी और सर्दियों में जब कभी सुबह सैर करने का मौक़ा मिलता तो वो एक बहुत ही खूबसूरत अनुभव होता। हालाँकि ऐसा आनंद कम ही लिया हैलेक़िन जब भी लिया दिल खोल के लिया।

भोपाल के बाद नंबर आता है दिल्ली का और मुझे हमेशा से दिल्ली की सर्दियां बेहद पसंद रहीं हैं। उन दिनों रजाई में घुसे रहने के अपने मज़े हैं लेक़िन रजाई से बाहर निकल कर अगर घूमने निकल जाये तो मौसम के अलग मज़े लेने को मिलते हैं। औऱ अगर ऐसे मौसम में सड़क किनारे अग़र अदरक की गरमाराम चाय पीने को मिल जाये तो क्या बात है।

ऐसा नहीं है की मुम्बई की सुबह खूबसूरत नहीं होती हैं लेक़िन बड़े शहरों के अपने मसले हैं। यहाँ सुबह साढ़े चार बजे से लोकल शुरू हो जाती है (फ़िलहाल बंद हैं) तो सड़कों पर गाड़ियाँ भी दौड़ने लगती हैं। छोटे शहरों में या उभरते हुए मिनी मेट्रो में अभी दिन की शुरुआत इतनी जल्दी नहीं होती।

मेरे पत्रकारिता के शुरुआती दिनों में मेरे इंदौर के एक सहयोगी जो अक्सर भोपाल-इंदौर के बीच अपनी मोटरसाइकिल से सफ़र करते थे, वो कहते थे हर शहर की अपनी नाइटलाइफ़ होती है। अगर किसी शहर का क़िरदार मालूम करना हो तो उसको रात में देखो। भोपाल में ऐसे मौके कम मिले लेक़िन दिल्ली में और उसके बाद मुम्बई में ऐसा कई बार हुआ।

अब ये फ़िरसे मौसम से दिन रात पर भटकना शुरू हो रहा है इसलिये इसको यहीं ख़त्म करते हैं। मुम्बई की बारिश के अपने किस्से कहानियाँ हैं लेक़िन अगर आपको कभी मौक़ा मिले तो ज़रूर देखिये इस शहर को बारिश के मौसम में। बस प्रार्थना इतनी सी है की आप बारिश में कहीं फँसे नहीं।

वैसे बारिश से याद आया हमारी फिल्मों में भी बारिश का एक अलग महत्व है। ढेरों गाने लिखे गये हैं सावन पर। ये नया प्रेम नहीं है। ये दशकों से चलता आ रहा है और आज भी बरकरार है।

किशोर कुमार जी की आवाज़ में रिमझिम गिरे सावन शायद पहला गीत था जिसके बोल मैंने लिखे थे अपने लिये। क्यों तो पता नहीं लेक़िन शायद गाना पसंद ही आया होगा। बारिश के कई गाने हैं जिनमें से ये एक है जिसमें बारिश का ज़िक्र तो ज़रूर है लेक़िन बारिश के अतेपते नहीं है।

ये बात भी पिताजी ने ही बताई की इस गाने को लता मंगेशकर जी ने भी गाया है। ज़्यादातर किशोर कुमार जी वाला ही देखने सुनने को मिलता। जब लता जी की आवाज़ वाला गाना सुना तो बहुत अच्छा लगा। लेक़िन जब इसको देखा तब इस गाने से मोहब्बत सी हो गयी। बारिश के गानों के साथ जो परेशानी है वो है माहौल बनाने की। मतलब आप साज़ो सामान से माहौल बनाते हैं, बारिश दिखाते हैं। लेक़िन अगर आपने ये गाना देखा होगा तो आपको इसमें बारिश से भीगा हुआ शहर दिखेगा।

सरफ़रोश के इस गाने को भी असली बारिश में शूट किया था। शायद इसलिये गाना खूबसूरत बन पड़ा है।

https://youtu.be/RFK0h5nyPZo

इस गाने में ठंडी हवा, काली घटा भी है लेक़िन बारिश का इंतज़ार हो रहा है। औऱ फ़िर जब यही मधुबाला बारिश में भीग कर किशोर कुमार जी के गैराज में अपनी कार की मरम्मत कराने पहुँचती हैं तो एक और खूबसूरत गीत बन जाता है जिसमें बारिश भी एक क़िरदार है लेक़िन उसका सिर्फ़ ज़िक्र है।

मुझे ऐसा लगता है मजरूह सुल्तानपुरी साहब ने सबसे ज़्यादा बारिश पर गाने लिखे हैं। जब सर्च कर रहा था तब ज़्यादातर गाने उनके ही लिखे हुये मिले। ऐसा ही एक और उनका ही लिखा हुआ बहुत ही प्यारा बारिश का गाना जिसमें बारिश नहीं है, ज़िक्र है।

तो आपका कौनसा पसन्दीदा मौसम है औऱ उस मौसम पर लिखा/फ़िल्माया गाना पसंद है? ज़रूर बतायें। इनाम तो कुछ नहीं, लेक़िन आपके बारे में बहुत कुछ बताता है ये मौसम। क्योंकि ये मौसम का जादू है मितवा…

और इस पल में कोई नहीं है, बस एक मैं हूँ, बस एक तुम हो

बहुत सी फिल्मों में ऐसी महफिलें देखी थीं जिसमें सब पार्टी का मज़ा ले रहे हैं और ऑरकेस्ट्रा का गाना भी चल रहा है। बड़े हुये तो होटलों में जाना होता था। मगर कभी जाना हुआ भी तो वही इंडियन कॉफ़ी हॉउस जाते या ऐसे ही किसी होटल जहाँ ये सब चीजें नहीं होती थीं। फ़िर लगा शायद बार में ऐसा होगा लेकिन जितने भी बार गया वहाँ तेज़ संगीत, DJ होता।

पाँच साल पहले पहली बार महाबलेश्वर जाना हुआ और एक ठीक ठाक होटल में रुकने की बुकिंग थी। दोपहर में जब पहुँचे तब खाना खाकर आसपास घूमने निकल गये। शाम को जब लौटकर आये तो पहले तो सभी बेसुरों ने इकट्ठा होकर कराओके पर गाना गाया। वहाँ एक नौजवान मिला जो ठीक ठाक ही गा रहा था। कराओके पर गाना एक कला है और आपको इसको मास्टर करने में थोड़ा सा समय लगता है। लेकिन भट्ट अंकल के पड़ोसी होने का असर आ ही गया क्योंकि मेरे गाये गाने सब लगभग सुनने में ठीक लग रहे थे।

थोड़ी देर बाद वो बंदा वहां से चला गया और उसके बाद बग़ल के डाइनिंग हॉल से गीत संगीत की आवाज़ आ रही थी। मेरी खुशी का ठिकाना नहीं। इतने बरसों से मेरी जो तमन्ना थी वो आज पूरी हो गयी थी। बस फ़िर क्या था एक अच्छी सी टेबल देखकर डेरा जमा लिया। उसके बाद शाम का कुछ अता पता नहीं रहा। दो लोगों की उस टीम ने कई फ़रमाइश गाने और मेड़ली सुनाई। उसके बाद से बाक़ी तीन रातें उन दोनों के नाम थीं।

इसके बाद टीम के सभी सदस्यों के साथ एक पार्टी में जाना हुआ जहाँ एक बार फ़िर लाइव ऑरकेस्ट्रा थी। दोनों ही पार्टी में एक बहुत बड़ा फ़र्क़ था लोगों का। पहली पार्टी में एक बहुत ही सुकून, इत्मीनान वाला माहौल था। सब अपने परिवार के साथ थे तो उस समय को ज़्यादा से ज़्यादा यादगार बनाने का था। ऑफिस वाली पार्टी में हंगामा बहुत ज़बरदस्त होता है। यादगार वो भी रहती हैं लेक़िन उसके कारण अलग होते हैं और आज जब याद आती हैं तो उन जोकरों की हरकतों के बारे में सोचकर हँसी आती है।

एक साल बाद फ़िर महाबलेश्वर जाना हुआ और इत्तेफाक से उसी होटल में रुकना हुआ। इस बार भी वो दोनों गायक और संगीतकार जोड़ी से मिलना हुआ। इस बार और मज़ा आया। उनको भी पता था कैसे गाने पसंद हैं तो उन्होंने भी पिटारे में से खोज खोज कर गाने सुनाये। क्या मैंने ऑरकेस्ट्रा में लालच में वहीं बुकिंग कराई थी?

आज मुझे वो महाबलेश्वर की शामें याद आ गईं जब फ़िल्म कर्ज़ में ऋषि कपूर जी को गिटार बजाते हुये देखा और लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल जी की क़माल की कर्ज़ की थीम धुन सुनी। उस धुन में क़माल का जादू है और वो न सिर्फ़ गिटार पर बल्कि संतूर पर भी बहुत ही अच्छी लगती है। पहले कई फिल्मों में इस तरह का थीम म्यूजिक हुआ करता था। अब तो फ़िल्म संगीतकारों से भरी रहती है लेक़िन संगीत नदारद होता है।

बरसों पहले जब मैं दिल्ली में था तब सलिल को जन्मदिन पर एक गिटार भेंट किया था। अब शायद वो किसी स्टोर रूम की शोभा बढ़ा रहा होगा (अगर पैकर्स की मेहरबानी रही हो तो)। ये शायद महाबलेश्वर की शामों की ही देन है की मैंने अपने जन्मदिन पर गिटार गिफ़्ट के रूप में ले लिया। क्या मैं कर्ज़ का थीम म्यूजिक बजा सकता हूँ? इन वर्षों में कुल चार बार हाँथ लगाया है और अभी तो ठीक से पकड़ना भी नहीं सीखा है। अभी पिछले एक दो हफ़्ते से बाहर रखा हुआ है और अब उनकी नज़र में वो आने लगा है। आदेश जल्द मिलेगा की उसको उसकी जगह पर रख दिया जाये। तब तक एक दो पोज़ खिंचवा ही सकते हैं।

हाँ 3 इडियट्स के शरमन जोशी के जैसे गिटार बजा के कुछ न कहो ज़रूर सुना सकता हूँ। या लम्हे के अनुपम खेर जैसे लागा चुनरी में दाग छुपाऊं कैसे की भी अच्छी तैयारी है। अगर इक्छुक हों तो संपर्क करें।