हम हैं नये अंदाज़ क्यूँ हो पुराना

नये वर्ष का स्वागत के तरीक़े में जैसे हम देखते देखते बड़े हुये, उसमें अब काफ़ी बदलाव आया है। ये बदलाव हालिया नहीं है औऱ हमारे समय से ये देखने को मिल रहा है।

जब हम बड़े हो रहे थे तो नये वर्ष से सम्बंधित ऐसी कुछ याद नहीं है। ये 1984 तक की बात होगी। उसके बाद हमारे जीवन में टीवी का प्रवेश हुआ। उसके बाद नये साल का मतलब हुआ करता था परिवार के साथ दूरदर्शन के कार्यक्रम देखना औऱ चूँकि दिसंबर के महीने में गाजर आ जाती थी तो गाजर के हलवे से मुंह मीठा कर साल की बदली मनाना। कभी कभार कुछ रिश्तेदार भी साथ में होते। लेक़िन ऐसा कम ही होता था क्योंकि बहुत रात हो जाती थी औऱ कड़ाके की सर्दी भी हुआ करती है इस समय, तो सब अपने अपने घरों में ये कार्यक्रम मानते।

पहला बदलाव आया जब बाहरवीं के समय साथ पढ़ने वालों ने एक मित्र के घर एक पार्टी का आयोजन किया। मुझे ये मिलना जुलना पसंद वैसे ही कम था। लेक़िन किसी दोस्त के कहने पर मैंने भी हांमी भर दी। कैंपियन स्कूल, जहाँ से मेरी पढ़ाई खत्म हुई, वहाँ काफ़ी बड़े घरों के लड़के भी पढ़ने आते थे, उनकी पार्टी भी कुछ अलग तरह की होती (ये मुझे वहाँ पहुँचने के बाद पता चला)।

वहाँ काफ़ी सारे स्कूल के मित्र तो थे ही, कुछ औऱ लोग भी थे। दिसंबर की उस आख़िरी रात मैं स्कूटर पर था औऱ सर्दी भी कड़ाके की थी। बहरहाल तैयार होकर, पिताजी का कोट औऱ टाई लगाकर हम भी पहुँचे। अब इस तरह की जो पार्टियाँ होती हैं ये भी मेरे लिये पहला ही अनुभव था। इससे पहले कभी किसी जन्मदिन की पार्टी में जाना हुआ होगा लेक़िन वो एक अलग तरह की पार्टी होती थी।

इस पार्टी में शायद पहली बार शराब या बियर मिलते हुये देखा था। हमारे जान-पहचान में बहुत कम लोगों को ऐसे खुलेआम शराब पीते हुये देखा था। पिताजी के ऐसे कोई शौक़ नहीं थे औऱ न उनके मिलने जुलने वालों में ऐसा होते हुये देखा था। ये सारे कार्यक्रम सबसे छिपते छिपाते हुये करे जाते थे। कई लोगों के बारे में ये जानकारी तो थी लेक़िन सामने पीने का चलन उन दिनों शुरू नहीं हुआ था।

मुझे याद है जब एक परिचित जो की मदिरा का सेवन करते थे, उनके यहाँ उनके पुत्र का विवाह था। उनका बस यही प्रयास था की किसी तरह हम लोगों को शराब पिलाई जाये। उनके कई सारे प्रयास असफल हुये लेक़िन एक दिन वो अपने मिशन में कामयाब हो ही गये। जैसा की होता है, आपको तो लेनी ही पड़ेगी। थोड़ी थोड़ी। लेक़िन उनके प्रयासों को तब धक्का लगा जब उनकी महँगी महँगी शराब से सजे बार में से कुछ न लेते हुये एक घूँट बियर का ले लिया। उसके बाद कई समारोह में जाना हुआ लेक़िन उन्होंने बुलाना छोड़ दिया। जिनको इसका न्यौता मिला उन्होंने बार की भव्यता के बारे में बताया।

इन दिनों पीने पिलाने का चलन बढ़ गया है। किसी शादी में अगर शराब नहीं तो जैसे कुछ कमी सी रह जाती है। अब आज ये पीने पिलाने के विषय में क्यों ज्ञान बाँटा जा रहा है?

पिछले दिनों ऐसे ही अचानक नव वर्ष गोआ में मनाने का कार्यक्रम बन गया। गोआ इससे पहले भी आना हुआ जब ऑफिस की एक ट्रिप हुई थी। अगर आप कभी गोआ नहीं आये हों तो ये एक तरह का कल्चर शॉक साबित होता है। आप किसी भी शहर में रहते हों, जिस खुलेपन से यहाँ जीवन का आंनद लिया जाता है आपको लगेगा आपने अभी तक कुछ नहीं किया है।

जब मैं पहली बार यहाँ आया तो मुझे जितनी आसानी से शराब मिलती है, ये देख कर एक झटका सा लगा था। इसके पीछे कई कारण हैं। भोपाल में शराब की दुकानें औऱ बार देखे थे। दोस्तों के साथ एकाध बार जाना भी हुआ था। जब नौकरी के सिलसिले में पहले दिल्ली औऱ बाद में मुम्बई जाना हुआ तो बहुत सीमित जगहों पर ये पीने पिलाने का कार्यक्रम होता था।मुम्बई में जहाँ मैं रहता हूँ वहाँ तो कोई शराब की दुकान ही नहीं है। अगर आप पीने का शौक़ रखते हैं तो आपको थोड़ी मशक्कत करनी पड़ेगी।

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अब ऊपर जिस तरह के माहौल को मैंने देखा था, उसके बाद गोआ में जिस तरह का चलन या कहें कोई आश्चर्यजनक बात नहीं थी। जैसे बाक़ी शहरों में कोल्ड ड्रिंक मिलती है, उतनी आसानी से शराब मिलती है, ये देखकर झटका लगना स्वाभाविक ही है। उसके बाद यहाँ कोई तैयार होकर घूमने का कोई चलन नहीं है। आप कम से कम कपड़ों में अपना काम चला सकते हैं।

एक बार आप गोआ आ जायें तो ज़िंदगी एक बड़ी पार्टी की तरह लगती है। सब बस बिंदास, बेफ़िक्र होकर तीन चार गुज़ारते हैं उसके बाद वही ढ़र्रे वाली ज़िंदगी में वापस। जैसे आज 2021 के आख़िरी दिन जब ये पोस्ट लिख रहा हूँ तो सभी औऱ से गानों का ज़बरदस्त शोर है। इस शोर में 2021 में जो भी हुआ वो तो नहीं दबेगा। 2020 के बाद मेरे जीवन में बहुत सारे बदलाव हुये औऱ जैसे इनको अपना कर 2021 शुरू ही कर रहे थे की कोरोना ने अपने तरीक़े से कुछ ज़िन्दगी के नये फ़लसफ़े सिखाये, पढ़ाये। ये क्लास अभी भी शुरू है।

जिस तरह का 2021 हम सभी के लिये रहा है, गोआ से यही सीख मिलती है पार्टी रोज़ चलती रहनी चाहिये। मतलब पार्टी जैसी सोच। किसी भी बात को ज़्यादा गंभीरता से न लें। हाँ, नशा ज़िन्दगी का हो, कुछ अच्छा करने का, कुछ असीमित करने का। 2022 आप सभी के लिये शुभ हो, इसी कामना के साथ।

…चलती रहे ज़िन्दगी

2020 जीवन के ऐसे ऐसे पाठ पढ़ा गया है जो ताउम्र नहीं भूल पायेंगे। यूँ तो साल 2020 से बहुत से गिले शिकवे हैं, लेक़िन इसीकी तारीखों में दर्ज़ हो गयी है एक कभी न भूलने वाली ऐसी तारीख़ जिसने हमारी ज़िंदगी को हमेशा हमेशा के लिये बदल दिया है।

कहते हैं जिस तरह किसी का जन्म एक बड़ी घटना होती है, ठीक वैसे ही किसी की मृत्यु एक जीवन बदलने वाली घटना होती है। लेक़िन इस जीवन बदलने वाली घटना ने इस साल बहुत सी ऐसी बातें बताई जिन्हें हम नज़रअंदाज़ करते रहते हैं लेक़िन जो बहुत महत्वपूर्ण हैं। मैं प्रयास करूँगा उन बातों को आपके साथ साझा करने का।

सामने है जो उसे लोग बुरा कहते हैं,
जिसको देखा ही नहीं उसको ख़ुदा कहते हैं।


आज, अभी

हम बहुत से काम कल पर टालते रहते हैं। किसी को फ़ोन करना हुआ, किसी की तारीफ़ करना हुआ, किसी को ये बताना की वो आपके लिये ख़ास हैं, किसी को ये बताना की कैसे उन्होनें आपका जीवन बदल दिया। मतलब लोगों का शुक्रिया अदा करना। अपने मन की बात करना। महीने के आखिरी रविवार नहीं, रोज़। प्रतिदिन।


2020 में मेरे दिल्ली के पीटीआई के मित्र अमृत मोहन ने भी हमको अलविदा के दिया। पीटीआई से निकलने के बाद मैंने अमृत से कई बार संपर्क साधने की कोशिश करी लेक़िन ये संभव नहीं हुआ। मैंने कई लोगों से उनका नंबर माँगा भी लेक़िन बात नहीं हो पाई। जब उनके निधन का दुखद समाचार मिला तो उस समय सिवाय अफ़सोस के मेरे पास कुछ नहीं बचा था। हाँ अमृत के साथ बिताये समय की यादें हैं और अब वही शेष हैं।


हमको मिली हैं आज ये घड़ियाँ नसीब से


अगर आप मोबाइल इस्तेमाल करते हैं या सोशल मीडिया पर फेसबुक देखते हों तो आपको कई बार पिछले वर्षों की कोई फ़ोटो या वीडियो देखने को मिल जाती है जो बताती है उस दिन एक साल या पाँच साल पहले आपने क्या कारनामा किया था। आप अगर सोशल मीडिया पर शेयर नहीं करते हैं तो आप एक बहुत बड़े स्कैंडल से बच जाते हैं। लेक़िन मोबाइल पर फ़ोटो तो फ़िर भी दिख ही जाती हैं। सभी के मोबाइल फ़ोटो से भरे पड़े हैं। लेक़िन आज से एक साल पहले 1 जनवरी 2020 के दिन हमने यशस्विता के साथ बिताया था और आज 1 जनवरी 2021 को बस उन्ही फ़ोटो औऱ हम लोगों की यादों में बसी है।


कुछ लोग एक रोज़ जो बिछड़ जाते हैं
वो हजारों के आने से मिलते नहीं
उम्र भर चाहे कोई पुकारा करे उनका नाम
वो फिर नहीं आते…


तेरा कर्म ही

मुझे पूरा विश्वास है चाहे हंसी मज़ाक में ही सही, भगवान श्रीकृष्ण ने श्रीमद्भागवत गीता में जो कहा है की कर्म करो फल की चिंता मत करो, इसे आपने कभी न कभी ज़रूर सुना होगा। इसमें ही जीवन का सार छुपा है। हालात कैसे भी क्यूँ न हों, हमे अपना कर्म करना चाहिये। फल को ध्यान में रखकर कर्म न करें। फल इस जीवन में मिले न मिले। लेक़िन कर्म करते रहिये। निरंतर।

जो भाग्य को मानते हैं उनके लिये चाणक्य ने कहा है

प्रश्न : अगर भाग्य में पहले से लिखा जा चुका है तो क्या मिलेगा?
उत्तर : क्या पता भाग्य में लिखा हो प्रयास करने से मिलेगा?

आगे बढ़ें या…

कई बार जीवन हमें ऐसे दोराहे पर लाकर खड़ा कर देता है जहाँ समझ नहीं आता क्या करूँ। इससे जुड़ा एक मज़ेदार किस्सा है। वैसे तो ऐसा आजकल कम होता है, लेक़िन पहले फ़िल्म देखने जाओ तो ऐसे दर्शक बहुत रहते थे जो बीच फ़िल्म में मज़ेदार टीका टिप्पणी करते। ऐसे ही एक फ़िल्म में सीन था जिसमें नायिका भगवान के समक्ष अपनी दुविधा बयाँ करते हुये कहती है, भगवन मेरी कुछ समझ में नहीं आ रहा। आगे भी अंधेरा, पीछे भी अंधेरा समझ में नहीं आता क्या करूं। दर्शक दीर्घा से आवाज़ आयी – मोमबत्ती जलाओ।


ठीक ऐसे ही जीवन में कई क्षण आते हैं जब आपको समझ नहीं आता। अगरआपकी दर्शक दीर्घा से मोमबत्ती जलाने की आवाज़ सुनाई देती है तो ठीक नहीं तो हर्षद मेहता के जैसे अपना लाइटर निकालें और रोशनी कर लें। ये भी ध्यान रखें इन अंधेरों में रहने से रोशनी नहीं मिलेगी। इसके लिये आपको आगे चलना ही होगा।

आँखों में नमी, हँसी लबों पर

फिल्में देखते हुये या कोई किताब पढ़ते हुये या कोई गाना सुनते हुये कई बार आँख भर आती है या कई बार बाल्टी भरने की नौबत भी आ जाती है। लेक़िन इस पूरी प्रक्रिया के पूरे होने के बाद बहुत ही अच्छा, हल्का सा लगता है। इसमें कोई शरमाने वाली बात भी नहीं है। अगर दर्द हो रहा है औऱ आँसू निकल रहे हैं तो उनका निकलना बेहतर है। पुरषों को ये सिखाया जाता रहा है की आँसू कमज़ोरी की निशानी है या उनको ये ताना दिया जाता है लड़कियों वाली हरकत मत करो।


मॉरल ऑफ द स्टोरी:

ज़िन्दगी जीने का कोई एक तरीक़ा नहीं है। सबका अपना अपना तरीक़ा होता है। बस एक बात जो सब पर लागू होती है फ़िर चाहे आप किसी भी धर्म, सम्प्रदाय या देश के हों कि अगर जन्म हुआ है तो मृत्यु अवश्य होगी। फ़र्क होता है बस हम इन दो घटनाओं के बीच में क्या करते हैं। तो आप अपने जीवन को अपने हिसाब से चुने और अपने ही हिसाब से उसे जियें भी। और जियें ऐसे की सबको रंज हो।

ज़िन्दगी ज़िंदादिली का नाम है,
मुर्दा दिल क्या खाख जिया करते हैं।

असीमित संभावनाओं से भरा हुआ हो २०१८

जब आप कोई काम रोज़ कर रहे हों और अचानक वो बंद करदें तो फिर से शुरुआत करने में थोड़ी मुश्किल ज़रूर होती है। मेरी हालत उस बहु जैसी है जो कुछ दिनों के लिए मायके होकर आयी है और ससुराल लौटने पर वही दिनचर्या उसका इंतज़ार कर रही है। लेकिन अच्छी बात ये है कि आज साल का लेखा जोखा लिया जा रहा है और इसी वजह से मेरे लिए यादों के इस काफ़िले को आगे बढ़ाना थोड़ा आसान हो गया है।

1 जनवरी 2017 के बाद इस साल जो बहुत कुछ घटित हुआ इसका न तो कोई अनुमान था न कोई भनक। कुछ बहुत अच्छी बातें हुईं इस साल। जो कुछ मन माफिक नहीं हुआ उसको मैं इसलिए बहुत ज़्यादा महत्व नहीं दे रहा क्योंकि इस साल बहुत लंबे अंतराल के बाद मैंने लिखना शुरू किया। मेरे लिए इससे बड़ी उपलब्धि कोई नहीं है। और ये इस साल की ही नहीं पिछले कई वर्षों की उपलब्धि कहूँगा।

ये की मैं ये पोस्ट मुंबई में नहीं बल्कि दिल्ली में बैठ कर लिखूंगा इसके बारे में दूर दूर तक कुछ नहीं मालूम था। आज जब ये लिख रहा था तो ये खयाल आया कि अगर ये मालूम होता तो क्या मैं कोई जोड़ तोड़ करके मुम्बई में ही बना रहता और दिल्ली के इस सफ़र पर निकलता ही नहीं। शायद कुछ नहीं करता क्योंकि अगर यहां नहीं आता तो कलम पर लगे बादल छंट नहीं पाते और विचारों का ये कारवाँ भटकता ही रहता। ये नहीं कि इसको मंज़िल मिल गयी है, लेकिन एक राह मिली जो भटकते मुसाफिर के लिये किसी मंज़िल से कम नहीं है।

पीछे मुड़ के देखता हूँ तो हर साल की तरह ये साल भी उतार चढ़ाव से भरा हुआ था। और सच मानिये तो अगर ये उतार चढ़ाव न हों तो जीवन कितना नीरस हो जाये। जो कुछ भी घटित हुआ मन माफ़िक या विपरीत, कुछ सीखा कर ही गया। हाँ इस साल बहुत नए लोगों से मिलना हुआ। कुछ बिल्कुल नए और कुछ पुराने ही थे जो नए लिबास में सामने आए। वैसे मुझे ये मिलने जुलने से थोड़ा परहेज़ ही है क्योंकि अक्सर मैं सच बोल कर सामने वाले को शर्मिंदा कर देता हूँ और बाद में खुद को कोसता हूँ कि क्यों अपनी ज़बान को लगाम नहीं दी।

वैसे ऐसी ही समझाईश मुझे फेसबुक पर लिखने के लिए भी मिली। क्यों मैं गड़े मुर्दे उखाड़ रहा हूँ। क्यों मैं चंद लोगों की लाइक के लिए ये सब कर रहा हूँ। हाँ ये सच है लिखने के बाद देखता हूँ कि प्रतिक्रिया क्या आयी लेकिन उसके लिए लिखता नहीं हूँ।

तो बस इसी एक प्रण के साथ कि इस वर्ष कलम को और ताक़त मिले और बहुत सी उन बातों के बारे में लिख सकूँ जो बताई जाना जरूरी हैं, आप सभी को नूतन वर्ष की ढेरों शुभकामनाएं। हम सभी के लिए है 2018 कें 365 दिन जो भरे हुए हैं असीमित संभावनाओं से।