अभी बोर्ड की परीक्षाओं के परिणाम आने शुरू हुये हैं और कई राज्यों के परिणाम आ भी चुके हैं। जैसा की पिछले कई साल से चलन चल रहा है, अब माता पिता अपने बच्चों के परिणाम को अपनी ट्रॉफी समझ कर हर जगह दिखाते फ़िरते हैं।
मुझे लगता है कभी कभी कुछ चीज़ों का न होना बहुत अच्छा होता है। जैसे हमारे समय ये सोशल मीडिया नहीं हुआ करता था। बस घर के सदस्य, कुछ और रिश्तेदारों तक आपके परिणाम की ये ख़बर रहती। बाकी जगह ख़बर फ़ैलते थोड़ा समय लगता और तब तक बात पुरानी हो जाती तो बात होती नहीं।
पिताजी शिक्षक रहे हैं और शायद उन्हें जल्दी ही पता लग गया था की मेरा और पढ़ाई का रिश्ता कैसा होने वाला है। लेक़िन उन्होंने एकाध बार ही नम्बरों के लिये कुछ बोला होगा। इसके बाद भी उन्होंने मुझे हर परीक्षा में सम्मिलित होने के लिये प्रोत्साहित किया। जिसके चलते मेरा पहली बार अकेले मुंबई-शिरडी-पुणे यात्रा का संयोग बना।
पिछले हफ़्ते से सोशल मीडिया और व्हाट्सएप पर माता पिता अपने बच्चों के नंबर बता रहें हैं। कुछेक ने तो बाकायदा मार्कशीट भी डाल दी। बहुत अच्छी बात है की बच्चों की मेहनत रंग लाई। उनको बहुत बहुत बधाई। मैं माता पिता को ऐसा करने से रोकने वाला कौन होता हूँ लेक़िन ये पूरे सर्कस से थोड़ा दुखी हूं।
मेरा माता-पिता से सिर्फ़ एक ही प्रश्न है अगर आपके बच्चे के नंबर कम आते तो भी क्या आप उतने ही उत्साह से ये ख़बर सबको बताते? अगर आप बताते तो आपको मेरा सादर प्रणाम। अगर नहीं तो इस इम्तिहान में आप फेल हो गये हैं।
लेक़िन मुझे बहुत ख़ुशी होती है ऐसे पालकों के बारे में जानकर बड़ी ख़ुशी होती है जो अपनी संतान को नंबर से नहीं आँकते। जो भी परिणाम है वो सबके सामने। अगर बहुत ख़राब आया है तो भी। ऐसे माता पिता की संख्या भी अधिक है जो ऊपर ऊपर तो कह देते हैं उन्हें नम्बरों से कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता लेक़िन दिल ही दिल में ये मनाते रहते हैं कि इतने प्रतिशत तो आ ही जायें। मेरे मामले में माता पिता का तो पता नहीं लेक़िन मैं तो बस किसी तरह पास होने की उम्मीद ही करता।
अभिनेता अनुपम खेर ने इससे जुड़ा किस्सा सुनाया था। जब वो परीक्षा में फेल हो गये थे तो उनके पिताजी ने उसका जश्न मनाया था। उस दिन से उनका असफ़ल होने का डर जाता रहा। आजकल माता पिता जब नम्बरों को पूरी दुनिया को बताते है (सिर्फ़ अच्छे नंबर आने पर ही) तो वो अनजाने में ही अपने बच्चों के ऊपर और प्रेशर डाल रहे होते हैं।
मैं ऐसे कई बच्चों को जानता हूँ जो एक या दो नंबर कम आने पर बहुत निराश हो जाते हैं क्योंकि घर पर इसके चलते हंगामा होगा। बच्चों के लिये दुःख होता है और माता पिता पर तरस आता है। अच्छे परिणाम से ही क्या आपकी संतान अच्छी मानी जायेगी?
आजकल जितने प्रतिशत बच्चों के आ रहे हैं उसको देख कर लगता है मेरा परिणाम तो नेगेटिव में होना चाहिये। मुझे याद है जब जान पहचान वालों के बच्चे बोर्ड परीक्षा देते थे तो उनका घर पर आना जाना बढ़ जाता था। कारण? वो पिताजी से ये पता करना चाहते थे कि फलाँ विषय की कॉपी कहाँ चेक होने जा रही है और वो ट्रेन का टिकट कटाकर पहुँच जाते। नंबर बढवाये जाते जिससे परिणाम अच्छे आयें। आज वो बच्चे लोग अच्छी पोस्ट पर हैं, कुछ विदेशी नागरिकता लेकर वहाँ पर \’सफलता\’ के झंडे गाड़ रहे हैं। वो यहाँ कैसे पहुँचे ये उन्हें मालूम तो होगा लेक़िन क्या वो इस बारे में कभी सोचते होंगे? शायद।
जैसा मैंने पहले ज़िक्र किया था विदेशी तोहफों के बारे में, ऐसे ही एक सज्जन को परिवार के बहुत से लोगों से कोफ़्त हुआ करती थी। उन लोगों से मिलना, उनका आना जाना सब बिल्कुल नापसंद। लेक़िन जैसे ही ये ग्रुप के लोग धीरे विदेशी धरती को अपनी कर्मभूमि बनाने लगे साहब के रंग भी बदल गये। वही नापसंद लोग उनके पसंदीदा बन गये।
ये मैं इसलिये बता रहा हूँ की आज अगर आपके नंबर कम आये हैं तो निराश मत हों। समय और नज़रिया बदलते देर नहीं लगती। जो आज आपको आपके नंबर के चलते आपको अपमानित महसूस करा रहे हैं वो आपको भविष्य के लिये तैयार ही कर रहे हैं। और कल आपने जब कुछ मक़ाम हासिल कर लिया तो यही लोग आपके गुण गायेंगे।