अध्यात्म में रुचि का कोई खास कारण तो याद नहीं पड़ता लेकिन पढ़ने के शौक़ ने थोड़ी बहुत जिज्ञासा जगाई। परिवार के लोग अलग अलग धर्म गुरुओं को मानते हैं और कहीं न कहीं उसका भी असर पड़ा। लेकिन घर में माहौल कुछ ऐसा नहीं था कि कोई किसी धर्म गुरु का ही पालन करे। इसलिए मैंने जब एक धर्म गुरु के प्रति अपनी रुचि दिखाई तो ऐसा माना गया कि हम भी मानने लगेंगे उन्हें। लेकिन ऐसा कुछ हुआ नहीं।
टीवी पर तो जैसे इन गुरुओं की बाढ़ सी आ गयी है। सुबह अगर आप सबको सुनने बैठ जाएं तो बाकी सभी काम छूट जाएं। विपासना के बारे में पहली बार PTI के मेरे सहयोगी रणविजय सिंह यादव से सुना था। इनके इगतपुरी सेन्टर के बारे में सुना था और वहीं जाने की इच्छा भी थी। लेकिन कोर्स हमेशा ही भरा रहता। पिछले वर्ष मुझे ये कोर्स संस्था द्वारा संचालित नवी मुम्बई के केंद्र में करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ।
मुझे ये तो पता था कि ये मुश्किल होगा। दस दिन बिना किसी से बात किये, बाहरी दुनिया से कोई संपर्क नहीं, कुछ लिखना पढ़ना नहीं बस ध्यान करना। और खानपान भी एकदम सादा और शाम 6 बजे के बाद कुछ खाने को नहीं।
लेकिन वो दस दिन कमाल के थे। आपके आस पास लोग थे लेकिन आप उनसे बात नहीं कर सकते। किसी चीज़ की ज़रूरत हो तो कागज़ की पर्ची पर लिख दें। और जिस मोबाइल पर ये पोस्ट लिख रहा हूँ वही जिसपर जाने अनजाने हर पाँच मिनट में नज़र पड़ ही जाती है और फ़िर अगले 15 मिनट कुछ भी देखते हुए बीत जाते हैं, उसके बिना रहने का अनुभव।
आज भी उन दस दिनों के बारे में सोचता हूँ तो लगता है वो किसी और जन्म की बात है। उस कोर्स का कितना फ़ायदा हुआ? मैं एक बार फिर से उन दस दिनों की राह देख रहा हूँ। शायद यही उस कोर्स की सबसे बड़ी उपलब्धि है। अगर आपको कभी मौका मिले तो ज़रूर जाएं और दस दिन दीजिये अपने आपको।