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आज कहाँ का नेशन, काहे की धरती मैय्या

दो दिनों से महाभारत देखना शुरू किया है। जब ये पहले देखा था तब इतनी समझ नहीं थी की ये क्या है। बस कहानियां सुनते थे और गीता उपदेश के बारे में सुना था। गीता सार का एक बड़ा सा पोस्टर किसी ने दिया था पिताजी को जिसमें बिंदुवार गीता समझाई गयी थी।

बीच में मुझे इस्कॉन के एक प्रभुजी से मिलने का मौका मिला और कुछ दिन उनसे गीता का ज्ञान लेने का सौभाग्य भी प्राप्त हुआ। लेकिन फ़िर मेरा तबादला दिल्ली हो गया तो ये सिलसिला ख़त्म हो गया। मुम्बई वापस आने के बाद फ़िर ये मौका नहीं मिला।

लेकिन दो दिनों से महाभारत देख कर लगा की गीता उपदेश के पहले भी काफी कुछ सीखने योग्य है। जैसे हस्तिनापुर नरेश शांतनु ने अपने बड़े पुत्र भीष्म को युवराज पद से हटा कर अपने अजन्मे पुत्र को युवराज बना दिया। मतलब कर्म को नहीं मानते हुये जन्म को ज़्यादा महत्व दिया।

हमारे आसपास भी देखिये यही हो रहा है। फलां का बेटा या बेटी ही किसी कंपनी की कमान संभालेंगी। उनके कर्म कैसा भी हो लेकिन जन्म के आधार पर ही उनके भविष्य का फैसला हो गया। कई राजनीतिक दलों में भी यही हो रहा है। सब एक दूसरे को आईना दिखाते रह जाते हैं लेक़िन कोई खुद अपने को देखना नहीं चाहते।

ऐसी ही एक घटना 2017 में हुई जब एक कंपनी के मालिक के घर नई संतान का आगमन हुआ। कंपनी के तमाम कर्मचारी गिरे जा रहे थे ये बताने के लिये की कंपनी को उसका भविष्य में होने वाला मालिक मिल गया है। बच्चे के जन्म को घंटे ही हुये थे लेकिन उसका भविष्य तय हो गया था।

लेकिन ये तो कंपनी का मामला है। आजकल साधारण माता पिता भी अपने बच्चे का भविष्य खुद ही तय कर लेते हैं। 3 इडियट्स में जो दिखाया है वो कतई ग़लत नहीं है। रणछोड़दास चांचड़ में इंजीनियर बनने की काबिलियत नहीं थी। इसलिये फुँसुक वांगड़ू उनकी जगह वो डिग्री लेते हैं और रणछोड़दास कंपनी में पिता का स्थान। फरहान अख्तर के जन्म से ही उनके इंजीनियर बनने की तैयारी शुरू हो जाती है।

अगर कोई बड़ा व्यवसाय खड़ा करता है लेकिन वो इसको परिवार का व्यवसाय न बनाकर सिर्फ़ व्यवसाय की तरह करता है तो क्या उसके पास सभी अच्छी योग्यता प्राप्त लोगों का अकाल रहेगा? अगर केवल और केवल योग्यता को ही आधार माना जाये तो क्या हम एक अलग देश होंगे? नेता के बेटे को नेता बिल्कुल बनने दिया जाये लेक़िन सिर्फ़ उनका एक उपनाम है इसके चलते उन्हें कोई पद न दिया जाये। पद सिर्फ़ उसे मिले जो उसका सही हक़दार है। जन्म लेने भर से पद का फैसला नहीं हो सकता। लेकिन अगर महत्वकांक्षी व्यक्ति हो तो? महाभारत होना तय है!

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