in ब्लॉग

यादों के झरोखे से: जब देव आनंद की वजह से शम्मी कपूर बने रॉकी

फ़िल्मों में अक़्सर ये होता रहता है कि निर्माता निर्देशक फ़िल्म किसी कलाकार को लेकर शुरू करते हैं लेक़िन फ़िर किन्हीं कारणों से बात नहीं बनती। फ़िर नये कलाकार के साथ काम शुरू होता है। पिछले हफ़्ते रिलीज़ हुई \’सरदार उधम\’ भी ऐसी ही एक फ़िल्म थी। निर्देशक शूजीत सरकार ने फ़िल्म की कल्पना तो इऱफान ख़ान के साथ करी थी लेक़िन उनकी बीमारी औऱ बाद में असामयिक निधन के बाद विक्की कौशल के हिस्से में ये फ़िल्म आयी। फ़िल्म है बहुत ही शानदार। अगर नहीं देखी है तो समय निकाल कर देखियेगा।

\"\"

हम आतें हैं इस पोस्ट पर वापस। यादों के झरोखों से आज देख रहें हैं हिंदी फ़िल्म जगत की एक ऐसी फ़िल्म जिसने सिनेमा का रंगढंग औऱ संगीत-नृत्य सब बदल डाला। आज नासिर हुसैन साहब की फ़िल्म \’तीसरी मंज़िल\’ को रिलीज़ हुये 55 साल हो गये। 1966 में रिलीज़ हुई इस बेहतरीन सस्पेंस फ़िल्म के गाने आज भी लोगों की ज़ुबान पर हैं। औऱ अब तो ये जानते हुये भी की ख़ूनी ____ हैं इसको देखने का मज़ा कम नहीं होता। (ख़ूनी का नाम इसलिये नहीं लिखा क्योंकि अग़र किसी ने फ़िल्म नहीं देखी हो तो। वैसे आपको नोटिस बोर्ड पर फ़िल्म का सस्पेंस लिख कर लगाने वाला किस्सा तो बता ही चुका हूँ। आप इसे यहाँ पढ़ सकते हैं।

नासिर हुसैन ने ये फ़िल्म दरअसल देव आनंद के साथ बनाने का प्लान बनाया था। देव आनंद के भाई विजय आनंद भी नासिर हुसैन के प्रोडक्शन हाउस में काम कर रहे थे औऱ उनको राजेश खन्ना-आशा पारिख के साथ बहारों के सपने बनाने का ज़िम्मा दिया गया था।

फ़िल्म की कहानी का आईडिया जो नासिर हुसैन ने एक सीन में सुनाया था वो कुछ इस तरह था। दो सहेलियाँ दिल्ली से देहरादून जा रही हैं औऱ गाड़ी में पेट्रोल भरवा रहीं हैं पेट्रोल पंप पर। नायिका की बहन की मौत ही गयी तीसरी मंज़िल से गिरकर लेक़िन उसको लगता है वो क़त्ल था। वो बात कर रही हैं क़ातिल के बारे में। सहेली नायिका से पूछती है उसको पहचानोगी कैसे? नायिका बोलती है सुना है वो काला चश्मा पहनता है। उसी पेट्रोल पंप पर अपनी मोटरसाइकिल में पेट्रोल भरवाता हुआ युवक उनकी बात सुनकर अपना काला चश्मा उतार कर जेब में रख लेता है।

विजय आनंद ने हुसैन से पूछा आगे क्या होता है? वो कहते हैं पता नहीं। आनंद तब कहते हैं इसपर काम करते हैं औऱ इस तरह जन्म हुआ तीसरी मंजिल का।

\"\"
देव आनंद तीसरी मंज़िल के फोटो शूट के दौरान

सबकुछ ठीक ठाक चल रहा था। देव आनंद ने बाकायदा फ़िल्म के लिये फ़ोटो शूट भी कराया था जिसमें वो ड्रम बजाते हुये दिख रहे हैं। लेक़िन बीच में आगयी अभिनेत्री साधना जी की सगाई। साधना का इस फ़िल्म से कोई लेना देना नहीं थी। फ़िल्म की अभिनेत्री तो आशा पारिख ही रहने वाली थीं।

हुआ कुछ ऐसा की साधना जी की सगाई में नासिर हुसैन औऱ देव आनंद के बीच कहासुनी हो गयी। दोनों ही महानुभाव ने नशे की हालत में एक दूसरे को काफ़ी कुछ सुनाया। दरअसल नासिर हुसैन ने देव आनंद को ये कहते हुये सुन लिया की नासिर ने उनके भाई विजय आनंद को एक छोटे बजट की ब्लैक एंड व्हाइट फ़िल्म (बहारों की मंज़िल) वो भी पता नहीं किसी राजेश खन्ना नामक अभिनेता के साथ बनाने को दी है। लेक़िन वो ख़ुद तीसरी मंजिल जैसी बड़ी, रंगीन फ़िल्म निर्देशित कर रहे हैं।

नासिर हुसैन इतने आहत हुये की उन्होंने अगले दिन विजय आनंद को तीसरी मंजिल का निर्देशक बना दिया औऱ स्वयं बहारों की मंज़िल का निर्देशन का ज़िम्मा उठाया। इसके साथ ही उन्होंने एक औऱ बड़ा काम कर दिया। उन्होंने देव आनंद को तीसरी मंज़िल से बाहर का रास्ता दिखा दिया। जब उनकी जगह किसको लिया जाये पर विचार हुआ तो शम्मी कपूर साहब का नाम आया। जब शम्मी कपूर को ये पता चला की देव आनंद को हटा कर उनको इस फ़िल्म में लिया जा रहा है तो उन्होंने इस शर्त पर काम करना स्वीकार किया की देव आनंद ये कह दें की उन्हें कपूर के इस फ़िल्म में काम करने से कोई आपत्ति नहीं है।

\"\"
शम्मी कपूर फ़िल्म की शूटिंग के दौरान

देव आनंद ने अपनी स्वीकृति दे दी औऱ नतीजा है ये तस्वीर। लेक़िन ये सब NOC (नो ऑब्जेक्शन सर्टिफिकेट) के बाद ऐसा नहीं हुआ कि फ़िल्म शुरू हो गयी। नासिर हुसैन के पास कहानी औऱ कलाकार दोनों थे लेक़िन उनकी फ़िल्म में संगीत का बहुत एहम रोल होता है। उन्हें तलाश थी एक संगीतकार की। किसी कारण से वो ओ पी नय्यर, जो उनकी पिछली फ़िल्म फ़िर वही दिल लाया हूँ के संगीतकार थे, उनको वो दोहराना नहीं चाहते थे।

शम्मी कपूर जब फ़िल्म का हिस्सा बने तो उन्होंने संगीतकार जोड़ी शंकर-जयकिशन का नाम सुझाया औऱ कोशिश करी की वो फ़िल्म का संगीत दें। लेक़िन इसी बीच आये आर डी बर्मन। अब बर्मन दा का नाम कहाँ से आया इसके बारे में कई तरह की बातें हैं। ऐसा माना जाता है गीतकार मजरूह सुल्तानपुरी साहब, जिन्होंने राहुल के पिता एस डी बर्मन के साथ कई फिल्मों में काम किया था, उन्होंने उनका नाम सुझाया। नासिर हुसैन ने मजरूह के कहने पर मुलाकात करी। ख़ुद आर डी बर्मन ने भी मजरूह सुल्तानपुरी साहब को इसका श्रेय दिया है।

\"\"

शम्मी कपूर को इसका भरोसा नहीं था की आर डी बर्मन फ़िल्म के लिये सही संगीतकार हैं। लेक़िन जब उन्होंने धुनें सुनी तो वो नाचने लगे औऱ वहीं से शुरू हुआ बर्मन दा, नासिर हुसैन एवं मजरूह सुल्तानपुरी का कारवां। फ़िलहाल बात तीसरी मंजिल की चल रही है तो कारवां की बातें फ़िर कभी।

जब फ़िल्म बन रही थी उसी दौरान शम्मी कपूर की पत्नी गीता बाली का निधन हो गया। फ़िल्म का सेट लगा हुआ था लेक़िन नासिर हुसैन साहब ने इंतज़ार करना बेहतर समझा। कुछ दिनों के बाद भी शम्मी कपूर काम करने को तैयार नहीं थे। विजय आनंद घर से उनको ज़बरदस्ती सेट पर लेकर आ गये। लेक़िन शम्मी कपूर बहुत दुःखी थे औऱ उन्होंने बोला उनसे ये नहीं होगा। विजय आनंद ने कहा एक बार करके देखते हैं अगर नहीं होता है तो काम रोक देंगे।

उस समय तुमने मुझे देखा होकर मेहरबां गाने की शूटिंग चल रही थी। फ़िल्म में ये गाना एक ऐसे मोड़ पर आता है जब नायक को लगता है नायिका को उनसे मोहब्बत हो गयी है औऱ इसी ख़ुशी में वो ये गाना गा रहे हैं। लेक़िन असल में बात कुछ औऱ ही थी। ख़ैर, शम्मी जी तैयार हुये औऱ शूटिंग शुरू हुई। सब कुछ ठीक हुआ औऱ जैसे ही शॉट ख़त्म हुआ सब ने तालियाँ बजायी। लेक़िन विजय आनंद को कुछ कमी लगी तो उन्होंने शम्मी कपूर से कहा एक टेक औऱ करते हैं।

\"\"

इतने समय बाद शम्मी कपूर वापस आये थे औऱ काम शुरू ही किया था। सबको लगा आज कुछ गड़बड़ होगी। लेक़िन जब शम्मी जी ने रिटेक की बात सुनी तो वापस पहुँच गये शॉट देने। सबने राहत की साँस ली। थोड़े आश्चर्य की बात है की इतनी बड़ी हिट फिल्म देने के बाद नासिर हुसैन औऱ शम्मी कपूर ने इसके बाद दोबारा साथ में काम नहीं किया।

तीसरी मंज़िल के बाद विजय आनंद ने भी कभी नासिर हुसैन के साथ दोबारा काम नहीं किया। नासिर हुसैन ने भी इस फ़िल्म के बाद बाहर के किसी निर्देशक के साथ काम नहीं किया। अपने बैनर तले सभी फ़िल्मों का निर्देशन उन्होंने स्वयं किया। जब उन्होंने निर्देशन बंद किया तो उनके बेटे मंसूर खान ने ये काम संभाला। उसके बाद से अब ये प्रोडक्शन हाउस बंद ही है।

तीसरी मंजिल वो आख़िरी नासिर हुसैन की फ़िल्म थी जिसके सभी गाने मोहम्मद रफ़ी साहब ने गाये थे। दोनों ने साथ में काम जारी रखा लेक़िन अब किशोर कुमार का आगमन हो चुका था। वैसे रफ़ी साहब को नासिर हुसैन की हम किसी से कम नहीं फ़िल्म के गीत \”क्या हुआ तेरा वादा\’ के लिये राष्ट्रीय पुरस्कार भी मिला।

\"\"

तीसरी मंज़िल से जुड़ी एक औऱ बात। ये जो तस्वीर है ये है सलमान खान के पिता सलीम खान। लेखक बनने से पहले उन्होंने कुछ फिल्मों में काम किया था उसमें से एक थी तीसरी मंज़िल। शम्मी कपूर आशा पारेख औऱ हेलन, जिनके साथ उन्होंने बाद में विवाह किया, को आप फ़िल्म के पहले गाने \’ओ हसीना ज़ुल्फोंवाली\’ में देख सकते हैं।

इसी गाने से जुड़ी एक बात के साथ इस पोस्ट का अंत करता हूँ। फ़िल्म के रिलीज़ होने के बाद एक सज्जन ने गीतकार मजरूह सुल्तानपुरी से इस गाने के बोल को लेकर सवाल किया की, \’मजरूह साहब क्या आप ये कहना चाहते हैं उस एक हसीना की ही ज़ुल्फ़ें हैं? क्या बाक़ी हसीनाओं के बाल नहीं हैं? क्या वो गंजी हैं?\’

अग़र फ़िल्म देखने के इच्छुक हों तो यूट्यूब पर देख सकते हैं। लेक़िन संभाल कर। देखना शुरू करेंगे तो उठना मुश्किल होगा। फ़िल्म की शुरुआत ही ऐसी है की आप जानना चाहते हैं आगे क्या होगा। खाने पीने की तैयारी के साथ मज़ा लें तीसरी मंजिल का।

Write a Comment

Comment