जय और सुधांशु कॉलेज की कैंटीन में चाय की चुस्कियां ले रहे थे तभी वहाँ कृति आ गयी। \”सरकार यहाँ चाय का लुत्फ़ उठा रहे हैं और इधर हम उन्हें ढूंढ के परेशान हुए जा रहे है,\” उसने सुधांशु की तरफ़ देखते हुये कहा। जय को मालूम था की ये ताना उसपर कसा जा रहा है इसलिये वो सर झुकाये सब सुन रहा था। सुधांशु के पास बचने का कोई उपाय नहीं था सो उसने कृति को भी चाय पीने का न्योता दे दिया।
जय उठ कर खड़ा हुआ जाने के लिये तो कृति ने हाँथ में पकड़ी किताबों को देखते हुये कहा, \”कहाँ तुम किताबों के चक्कर में फंसे हुए हो। ज़रा ज़िन्दगी के बाकी मज़े भी लो।\”
\”उसी की तो तैयारी कर रहा हूँ। थोड़ा सा त्याग अभी और बाद में मज़े,\” जय बोला।
\”पर तब उम्र निकल जाएगी,\” सुधांशु ने कहा।
\”भाई मज़े लेने की कोई उम्र नहीं होती,\” जय ने चलते हुए कहा।
सुधांशु हाथ जोड़ते हुए बोला \’बाबा की जय हो\’ और दोनों कृति को वहीं छोड बात करते हुए कॉलेज की तरफ चल पड़े। जय ने एक बार मुड़कर कृति को देखा जो बाकी लोगों से बात कर रही थी और यूँ ही मुस्कुरा उठा। उसे ध्यान आया की कृति से ये पूछना तो रह गया की वो उसे क्यों ढूंढ रही थी। लेकिन अब फ़िर से कौन डाँट खाये। आज का कोटा हो गया था।
जय अपने आप को बड़ा प्रैक्टिकल इन्सान मानता था। उसे इमोशन फ़िज़ूल तो नहीं लेकिन फालतू लगते थे। उसका मानना था भावनाओं में पड़ कर इन्सान बहुत कुछ गवां बैठता है। लेकिन कृति के लिये उसके दिल में एक ख़ास इमोशन था। वो दोस्ती थी, प्यार था या वो उसकी इज़्ज़त करता था ये समझना उसके लिये थोड़ा मुश्किल हो रहा था।
जय इन्हीं ख़यालों में खोया हुआ था की स्मृति की आवाज़ उसे वापस वर्तमान में ले आयी। वो उसे किसी से मिलवा रही थी। डॉ रायज़ादा के पुराने सहयोगी थे जिनके साथ वो रोज़ सुबह सैर के लिये जाते थे। उस ग्रुप के बाकी सदस्यों से भी जय, स्मृति, सुधांशु और कृति मिले। इस मिलने मिलाने से जय थोड़ा परेशान हो गया था। उसने सुधांशु को ढूंढा और उससे पूछा की उसके पास सिगरेट है क्या। दोनों ने किशन काका से छत की चाबी ली और चल दिये।
जय की तरफ़ सिगरेट बढ़ाते हुये सुधांशु ने पूछा, \”कैसे हो जय?\”। जबसे वो जयपुर आया था तबसे वो और सुधांशु साथ में थे लेकिन पूरे समय डॉ रायज़ादा के अंतिम संस्कार की तैयारी में लगे रहे तो दोनों को समय ही नहीं मिला एक दूसरे से बात करने का।
इस बात को दस बरस हो गये थे लेकिन आज भी जब वो सुधांशु को देखता तो जय को याद आती कृति और सुधांशु की नीचे ड्राइंग रूम में लगी शादी वाली फ़ोटो और कृति का वो फ़ोन कॉल। \”जय मैं शादी कर रही हूँ\”। उसको टूटे फूटे शब्दों में बधाई देते हुये जय ने ये पूछा ही नहीं लड़का कौन है।