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आ अब लौट चलें

दिल्ली से चला परिवार आशा है सकुशल रायपुर के पास अपने गाँव पहुँच गया होगा। हम सभी लोगों के लिये भी ये एक ताउम्र याद रखने वाला अनुभव बन चुका है। कभी न ख़त्म होने वाली लगने वाली यात्रा इस परिवार को अलग कारण से याद रहेगी और हम घर में क़ैद लोग इन दिनों को बिल्कुल अलग कारणों से याद रखेंगे। मैं बोल तो ऐसे रहा हूँ की लोककल्याण मार्ग निवासी से मेरी दिन में दो चार बार बात हो जाती है और वहाँ से मुझे पता चला है कि ये जल्दी ख़त्म होने वाला है। ये कारावास अगले आठ दिनों में ख़त्म होगा, ये मुश्किल लगता है।

आज से करीब चौदह वर्ष पूर्व मुझे भोपाल में कार्य करते हुये एक संस्था से जुड़ने का मौक़ा मिला जो ग्रामीण क्षेत्रों में हो रहे विकास कार्यों की मोनिटरिंग करती थी। मुझे शुरू से ऐसे कामों में रुचि रही है। इससे पहले भी मैंने थोड़ा बहुत कार्य किया था।

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इस कार्य के लिये मुझे जबलपुर के समीप के गाँव में जाने का अवसर प्राप्त हुआ। गाँव से मेरा कोई नाता नहीं रहा है। पुष्तैनी गाँव भोपाल के समीप ही था लेक़िन जैसे होता है \’बहुत\’ से कारणों के चलते जाने के बहुत ही सीमित अवसर मिले। शहरों के समीप जो गाँव थे उनका उस समय ज़्यादा शहरीकरण नहीं हुआ था। लेकिन जिस गाँव में मुझे जाना था वो थोड़ा अंदर की और था।

मेरे लिये ये अनुभव बिल्कुल अलग था। गाँव को दूर से देखना और वहाँ जाकर उनके साथ समय बिताना, उनके रहन सहन को देखना, उनके तौर तरीकों को समझना। ये सब इस यात्रा में जानने की कोशिश हुई। एक बार जाना और चंद घंटे में ये समझ पाना बहुत ही मुश्किल है।

लेकिन उस दिन मैंने देखा हमारे गाँव दरअसल एक अलग दुनिया है। गाँधीजी ने सही कहा था – असली भारत गाँव में बसता है। उस समय गाँव में सभी बुनियादी सुविधाओं का अभाव था। दस किलोमीटर दूर से खाने पीने का सामान लेकर आना पड़ता था। स्वास्थ्य सुविधायें कागज़ पर ही रही होंगी। लगा था इतने वर्षों में स्थिति में सुधार हुआ होगा। लेकिन पिछले दिनों देखा दिल्ली के समीप एक गाँव है जहाँ नाव द्वारा पहुँचा जा सकता है लेकिन वहाँ कोई सरकारी मदद नहीं पहुँची थी।

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अगर इसको हम ज़्यादातर गाँव की सच्चाई मान लें तो क्यूँ इतनी बड़ी संख्या में लोग लॉकडाउन के बाद पैदल ही निकल पड़े? कारण बहुत ही सीधा सा है। वो जहाँ के लिये निकले थे वो उनका घर है। वहाँ उनके अपने हैं। घर कैसा भी हो, सुविधाओं का भले ही अभाव हो लेकिन वो अपना है। शहर तो सिर्फ़ परिवार के भरण पोषण के लिये टिके हुए हैं। सिर्फ़ पैसा कमाने के लिये।

घर जाने पर एक आनन्द की अनुभूति। जैसी मुझे आज भी होती है जब कभी भोपाल जाने का मौक़ा मिलता है। बाक़ी बहुत कुछ मुझे उस परिवार से सीखना है।

https://youtu.be/DIbc7G-q6Rg

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