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काम नहीं है वर्ना यहाँ, आपकी दुआ से बाकी सब ठीक ठाक है

मैं जब लिखने बैठता हूँ तो कोई सेट एजेंडा लेकर नहीं चलता। उस दिन जो भी पढ़ा, देखा, सुना उसका निचोड़ होता है और उसमें से कोई कहानी निकल जाती है। पिछले तीन हफ्तों से कुछ ऐसा देखा, पढ़ा, सुना की बहुत लिखने की इच्छा होते हुये भी एक शब्द नहीं लिख पाया। कई दिन इसी में निकल गये। आज तीन ड्राफ्ट को लिखा फ़िर कचरे में डाल दिया। ये एक और प्रयास है। देखें किधर ले जाता है।

अब ये बात बहुत पुरानी हो चुकी है। वैसे हुये कुछ दस दिन ही हैं लेकिन जिस रफ़्तार से समय निकलता है लगता है बहुत लंबा समय हो गया है। कबीर सिंह के निर्देशक संदीप रेड्डी वांगा का एक इंटरव्यू जिसमें उन्होंने उनके हिसाब से प्यार क्या होता है ये बताया। बस लोग तो जैसे इस फ़िराक़ में थे की कैसे उन पर हमला बोला जाये। संदीप से मैं सहमत या असहमत हूँ मुद्दा ये नहीं है। क्या संदीप को अपने हिसाब से कुछ कहने का अधिकार है? अगर उनके हिसाब से लड़का या लड़की एक दूसरे पर अधिकार रखते हैं तो उन्हें उसकी अभीव्यक्ति की भी छूट मिलनी चाहिये। अगर आप उनसे सहमत नहीं है तो आप अपने पैसे उनकी फ़िल्म पर मत ख़र्च करिये। अपने जानने पहचानने वालों को भी अपने तर्कों से सहमत करिये की वो उनकी फ़िल्म न देखें।

आपके हिसाब से जो प्यार की अभिव्यक्ति हो वो मेरे लिये शायद एक अपमानजनक कृत्य हो। या जो मेरा अभीव्यक्त करने का तरीका हो उसे देख आप हँसने लगे। तो क्या मेरा तरीका ग़लत है? क्या मुझे आपके हिसाब से या आपको मेरे हिसाब से अपने सभी कार्य करने चाहिये?

हम लोग अभिव्यक्ति की आज़ादी की बात तो करते हैं लेकिन किसी दूसरे को ऐसा करता देख उससे सवाल पूछना शुरू कर देते हैं। अंग्रेज़ी में एक कहावत है – The right to be right belongs to everyone. लेकिन हम संदीप को ये अधिकार नहीं दे रहे क्योंकि उनकी सोच अलग है।

अब चूँकि सभी के पास अपने विचार व्यक्त करने के लिये अलग अलग प्लेटफार्म हैं तो कोई मौका भी नहीं छोड़ता। अपने आसपास ही देखिये। व्हाट्सएप, फ़ेसबुक और ट्विटर के पहले भी लोग राय रखते थे लेक़िन व्यक्त करने का ज़रिया सीमित था। आपके आसपास के कुछ लोग जानते थे आपके विचार। आज तो न्यूयॉर्क में प्रियंका चोपड़ा के कपड़ों के बारे में गौहरगंज के सोनू लाल भी राय रखते हैं और उसे इन्हीं किसी प्लेटफार्म पर शेयर भी करते हैं।

कभी मुझे वादविवाद प्रतियोगिता में भाग लेने में बहुत अच्छा लगता था। दूसरों के विचार सुन कर कुछ नया तर्क सीखने को मिलता। छठवीं कक्षा में रामधारीसिंह दिनकर की कविता कलम या तलवार से प्रेरित वादविवाद में मैंने जब तलवार का पक्ष लिया था तब शायद ये नहीं पता था की एक दिन पाला बदल कर में क़लम की हिमायत करूँगा। लेकिन आज ये जो बेतुकी बहस चलती है उसका हिस्सा बनने से परहेज़ है। वादविवाद के चलते एक चीज़ समझ में आई की तर्क का अपना महत्व है। आसमां से चाँद तोड़ लाने का वादा तो हर आशिक़ करता है।

https://youtu.be/NykVp7qG_Ss

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