ये जो रात बैठ करता हूँ,
मैं कल का इंतज़ार,
क्या तुम भी अपना दिन,
ऐसे ही कर देती हो हवाले मेरे।
ये जो अपने गानों की प्लेलिस्ट में
तुम्हारा गीत सुनता हूँ बेसुध,
क्या कोई ग़ज़ल सुन
गुनगुना लिया करती हो तुम भी मुझे।
ये जो किताबों के पन्नो के बीच
मिल जाते हैं तुम्हारे अंश,
क्या तुम्हारी चादर की सिलवटों में
मिल जाता हूँ मैं भी तुम्हें।
ये जो शुरु हुए हैं सिलसिले,
कहीं न पहुंचने वाली मुलाक़ातों के,
क्या तुम भी इस सफ़र पर,
हमसफर बनी हो सिर्फ मेरे ही लिए।
Like this:
Like Loading...